साइबर ठगों ने उद्योगपति से कहा कि वे ‘डिजिटल अरेस्ट’ हो गए हैं, की 7 करोड़ रुपए की ठगी

नई दिल्ली
कुछ दिनों पहले दिग्गज उद्योगपति एस पी ओसवाल के साथ 7 करोड़ रुपए की ठगी होने की खबर सामने आई थी। साइबर ठगों ने उद्योगपति से कहा कि वे ‘डिजिटल अरेस्ट’ हो गए हैं और अपनी बात साबित करने के लिए नकली वर्चुअल कोर्ट रूम भी बनाया। पैसे अपने बैंक में ट्रांसफर करवाने के लिए ठगों ने फर्जी सीबीआई और नकली चीफ जस्टिस के ऑर्डर तक पेश कर दिए। इसी तरह डिजिटल अरेस्ट की वजह से दिल्ली के एक 50 वर्षीय पत्रकार को 1.86 करोड़ रुपये गवांने पड़े। वहीं कुछ दिनों पहले ही साइबर अपराधियों ने अहमदाबाद की एक 27 साल की महिला से 5 लाख रुपये की जबरन वसूली करने से पहले उसे वेबकैम पर कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया। इन मामलों में एक बात समान है। सभी मामलों में पीड़ितों को ‘डिजिटल अरेस्ट’ किया गया था।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में साइबर अपराधों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। फरवरी में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने एक जवाब में लोकसभा को बताया था कि 2023 में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी की 11 लाख से ज्यादा शिकायतें दर्ज कराई गई थीं। देश में इंटरनेट यूजर्स की बढ़ती संख्या के बीच साइबर फ्रॉड के नए नए तरीके भी सामने आ रहे हैं। डिजिटल अरेस्ट भी इन्हीं में से एक है।

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क्या है डिजिटल अरेस्ट?
डिजिटल अरेस्ट के दौरान ऑडियो या वीडियो कॉल के जरिए अपराधी फर्जी अधिकारी बन कर लोगों को डराते हैं और गिरफ्तारी के झूठे दलील से उन्हें उनके घर में रहने पर मजबूर करते हैं। इस दौरान वह उन्हें छोड़ने के बदले में उनसे पैसे ऐंठते हैं। मार्च 2024 में गृह मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी। इसके जरिए सरकार ने लोगों को सचेत किया था कि किस तरह अपराधी फर्जी पुलिस अधिकारी, सीबीआई, नारकोटिक्स विभाग, आरबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और दूसरे कानून प्रवर्तन एजेंसियों का रूप धारण करके लोगों को ब्लैकमेल करते हैं और उन्हें डिजिटल गिरफ्तारी की धमकी देते हैं।

कैसे लगाते हैं चूना
इस तरह के मामलों में अपराधी आम तौर पर पीड़ितों से संपर्क करते हैं और आरोप लगाते हैं कि पीड़ित ने या तो अवैध सामान, जैसे ड्रग्स, नकली पासपोर्ट या अन्य प्रतिबंधित सामान वाला पार्सल भेजा है या उसे प्राप्त होने वाला है। कुछ मामलों में वे आरोप लगाते हैं कि पीड़ित का कोई करीबी रिश्तेदार या दोस्त किसी अपराध में शामिल रहा है और अब हिरासत में है। तथाकथित मामले को सुलझाने के लिए धोखेबाज पैसे की मांग करते हैं। कुछ मामलों में पीड़ितों को कहा जाता है कि उन्हें डिजिटल अरेस्ट कर लिया गया है और जब तक अपराधियों की मांगें पूरी नहीं हो जातीं तब तक उन्हें स्काइप या अन्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए लगातार निगरानी में रखा जाता है। ठग पुलिस स्टेशनों और सरकारी दफ़्तरों की तर्ज पर स्टूडियो का इस्तेमाल करते हैं और असली दिखने के लिए वर्दी पहनते हैं।

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सरकार ने किया है आगाह
गृह मंत्रालय के मुताबिक यह एक संगठित ऑनलाइन अपराध है और इसे सीमा पार का सिंडिकेट संचालित करता है। अधिकारियों का कहना है कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई चीज़ नहीं है फिर भी पढ़े-लिखे लोग इन अपराधियों के शिकार हो रहे हैं। साइबर अपराध से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए बनाए गए भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) ने भी एक चेतवानी जारी की है जिसमें कहा गया है कि सीबीआई, पुलिस या ईडी वीडियो कॉल पर किसी को भी गिरफ्तार नहीं करते हैं।
कहां करें शिकायत

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इस तरह के धोखाधड़ी वाले कॉल आने के बाद व्यक्ति को तुरंत साइबर अपराध हेल्पलाइन नंबर 1930 पर घटना की रिपोर्ट करनी चाहिए। ऑनलाइन स्टॉकिंग से लेकर वित्तीय धोखाधड़ी तक किसी भी साइबर अपराध की रिपोर्ट गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (www.cybercrime.gov.in) पर की जा सकती है। मदद के लिए स्थानीय पुलिस स्टेशन से भी संपर्क किया जा सकता है। न्यूज 18 ने सैट्रिक्स इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी लिमिटेड के कंट्री मैनेजर मोहन मदवाचर के हवाले से बताया कि अपराधी 'जेल', 'पुलिस स्टेशन' और 'गिरफ्तारी' जैसे शब्दों से व्यक्ति के डर और कलंक का फायदा उठाते हैं। उन्होंने इन स्कैमर्स से निपटने के लिए जागरूकता अभियान की जरूरत पर जोर दिया है।

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