नागौर की राजनीति में मिर्धा परिवार की घर वापसी, तेजपाल फिर कांग्रेस में शामिल

नागौर

राजस्थान की राजनीति में मिर्धा परिवार का नाम हमेशा ही एक सियासी तूफान के पर्याय के रूप में लिया जाता रहा है। मारवाड़ के इस जाट बहुल इलाके में मिर्धा वंश की जड़ें इतनी गहरी हैं कि कभी कांग्रेस को मजबूत करने वाले नाथूराम मिर्धा के वारिस आज भाजपा की ओर झुकते नजर आ रहे हैं।

ताजा घटनाक्रम में कुचेरा नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष तेजपाल मिर्धा ने अपने 500 से अधिक समर्थकों के साथ कांग्रेस को अलविदा कह दिया और भाजपा में शामिल हो गए। देर रात प्रगतिशील संगठन (कांग्रेस समर्थित) का दामन थाम लिया। यह कदम 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान हुए दृश्यों की याद दिला रहा है, जब तेजपाल ने गठबंधन प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल के खिलाफ खुला विद्रोह किया था। लेकिन अब, ज्योति मिर्धा के खिलाफ पार्टी के संगठन की गुटबाजी के चलते उन्होंने फिर से कांग्रेस का दामन थाम लिया।

यह घटना नागौर की सियासत को एक नया आयाम दे रही है। तेजपाल मिर्धा, जो खींवसर विधानसभा क्षेत्र से 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे, ने उस समय राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के हनुमान बेनीवाल के खिलाफ मैदान संभाला था। बेनीवाल, जो आरएलपी के संस्थापक हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में नागौर से जीते थे, ने ज्योति मिर्धा को हराया था। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-आरएलपी गठबंधन के तहत बेनीवाल को ही टिकट मिला, जिससे मिर्धा परिवार में खलबली मच गई। तेजपाल ने तब खुलेआम बेनीवाल के खिलाफ प्रचार किया और ज्योति मिर्धा का समर्थन किया। परिणामस्वरूप, अप्रैल 2024 में कांग्रेस ने तेजपाल सहित तीन नेताओं—सुखराम डोडवाडिया और भंवराराम सूबका—को छह साल के लिए निष्कासित कर दिया।

निष्कासन के ठीक बाद, 12 अप्रैल 2024 को तेजपाल मिर्धा के आह्वान पर कुचेरा नगरपालिका के 21 पार्षदों, 8 पूर्व पार्षदों और 7 पंचायत समिति सदस्यों ने सामूहिक रूप से कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। लगभग 400 से अधिक कार्यकर्ताओं ने त्यागपत्र सौंपे, जिससे नागौर में कांग्रेस की नींव हिल गई। तेजपाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, "नागौर में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 8 में से 4 सीटें जीतीं। लोकसभा में भी हमारी स्थिति मजबूत थी, फिर आरएलपी से गठबंधन क्यों? हनुमान बेनीवाल कांग्रेस को तोड़ने का हथियार मात्र हैं।"

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एक साल बाद, तेजपाल ने फिर वही रास्ता चुना है। देर रात राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कांग्रेस पार्टी से निष्कासित तेजपाल को दुबारा पार्टी में शामिल कर लिया। डोटासरा ने उन्हें पार्टी में शामिल करते हुए धन्यवाद दिया। तेजपाल ने कहा कि दिन का भटका रात को घर वापिस आ जाना कोई बड़ी बात नहीं है। उनका मकसद परिवार की एकजुटता और ज्योति मिर्धा के प्रति वफादारी था।

तेजपाल के साथ उनके 500 समर्थक भी भाजपा से वापिस कांग्रेस में शामिल हो गए, जो कुचेरा और आसपास के इलाकों में मिर्धा परिवार की मजबूत पकड़ को दर्शाता है। तेजपाल खुद कुचेरा नगरपालिका के दो बार निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए हैं, और खींवसर में उनका प्रभाव निर्विवाद है। यह घटना मिर्धा परिवार की जटिल सियासी यात्रा का एक और अध्याय जोड़ती है। स्वर्गीय नाथूराम मिर्धा, जिन्हें राजस्थान में 'बाबा' के नाम से जाना जाता है, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और किसान नेता थे। वे कांग्रेस के दिग्गज नेता थे, जिन्होंने 1977 के लोकसभा चुनाव में इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की एकमात्र सीट नागौर से जीती थी।

नाथूराम की विरासत पर चलते हुए उनकी पोती डॉ. ज्योति मिर्धा 2009 में नागौर से कांग्रेस सांसद बनीं। लेकिन 2023 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा का दामन थाम लिया। दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में शामिल होते हुए ज्योति ने कहा था कि "कांग्रेस गलत दिशा में जा रही है, राष्ट्र निर्माण में अवसर कम हैं।" भाजपा ने उन्हें तुरंत प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया और 2023 विधानसभा तथा 2024 लोकसभा में नागौर से टिकट दिया।

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ज्योति के इस कदम के बाद मिर्धा परिवार के अन्य सदस्यों ने भी भाजपा की ओर कदम बढ़ाए। मार्च 2024 में ज्योति के चाचा रिछपाल मिर्धा और उनके बेटे विजयपाल मिर्धा (डेगाना विधायक) ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा जॉइन कर ली। ज्योति ने इसे अपनी सफलता बताया, यह कदम भाजपा को और मजबूत करेगा। लेकिन परिवार में सब कुछ सुगम नहीं चला। अप्रैल 2024 में रिछपाल के भाजपा जॉइन करने के बावजूद तेजपाल ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर परिवार के साथ में डटे रहने का फैसला किया था। अब तेजपाल का वापिस कांग्रेस में आना परिवार की एकजुटता को मजबूत करने का संकेत नहीं दे रहा हैं।

हालांकि, नागौर के भाजपा संगठन में मिर्धा परिवार और स्थानीय नेताओं के बीच गुटबाजी चरम पर है। ज्योति मिर्धा को टिकट मिलने के बाद से ही संगठन के पुराने नेताओं में असंतोष पनप रहा है। मिर्धा परिवार की प्रभुत्व की कोशिशों से स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता नाराज हैं। सूत्र बताते हैं कि ज्योति और संगठन के बीच खींचतान तेज हो गई है। हाल ही में नवंबर 2024 के विधानसभा उपचुनावों से पहले नागौर और सवाई माधोपुर से 14 कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल होने पर भी ज्योति की भूमिका प्रमुख रही, लेकिन संगठन ने इसे अपनी जीत बताया। कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा, "भाजपा डर दिखाकर तोड़ रही है।"

स्थानीय लोग कयास लगा रहे हैं कि यह अंत नहीं है। ज्योति मिर्धा और भाजपा संगठन के बीच जारी तनाव के चलते रिछपाल मिर्धा समेत अन्य परिवारजन फिर से कांग्रेस की ओर कभी लौट सकते हैं। एक स्थानीय किसान नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मिर्धा परिवार की राजनीति हमेशा उतार-चढ़ाव वाली रही है। नाथूराम बाबा की विरासत किसानों की आवाज है, लेकिन आज सत्ता की होड़ में बंट गई है। नागौर जिले के 9 विधानसभा क्षेत्रों में से 3 पर मिर्धा परिवार का कब्जा रहा है—खींवसर, डेगाना और नागौर। 2023 चुनावों में ही चार मिर्धाओं ने मैदान संभाला था: तेजपाल (कांग्रेस, खींवसर), विजयपाल (कांग्रेस, डेगाना), हरेंद्र (कांग्रेस, नागौर) और ज्योति (भाजपा, नागौर)।

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यह घटना न केवल कांग्रेस को मजबूत कर रही है, बल्कि आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में भी भाजपा पर असर डालेगी। कुचेरा जैसे छोटे शहरों में तेजपाल का प्रभाव विकास कार्यों से जुड़ा है—सड़कें, पानी की आपूर्ति और किसान योजनाओं पर उनका फोकस रहा। उनके समर्थकों का भाजपा से रुष्ठ होकर वापिस कांग्रेस में जाना मतदाताओं को प्रभावित करेगा।

दूसरी ओर, हनुमान बेनीवाल की आरएलपी, जो जाट कार्ड खेलती है, को भी चुनौती मिलेगी। बेनीवाल ने 2024 चुनावों में ज्योति को हराया था, लेकिन मिर्धा परिवार की एकजुटता भाजपा को फायदा पहुंचा सकती है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नागौर की सियासत मिर्धा परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। स्वर्गीय नाथूराम मिर्धा ने कांग्रेस को मजबूत किया, लेकिन उनके बाद परिवार बंट गया। ज्योति की शादी हरियाणा के बिजनेसमैन नरेंद्र सिंह गहलोत से होने से उनका नेटवर्क व्यापक है। तेजपाल का यह कदम परिवार को एकजुट करने की कोशिश थी और लोकसभा चुनाव में देखने को मिली थी, लेकिन गुटबाजी से भाजपा का संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो सकता है।

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