दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियों अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर चरम पर पहुंच गया, चीन ने भी चल दिया बड़ा दाव

नई दिल्ली
दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियों अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर चरम पर पहुंच गया है। अमेरिका ने जहां चीनी सामानों के आयात पर टैरिफ बढ़ाते-बढ़ाते 145 फीसदी तक पहुंचा दिया है, वहीं चीन ने भी पलटवार करते हुए अमेरिकी सामानों के आयात पर कुल 125 फीसदी तक का टैक्स लगा दिया है। इसके साथ ही चीन ने हॉलीवुड फिल्मों और रेयर अर्थ मिनरल्स यानी दुर्लभ खनिजों पर भी बड़ा दांव चल दिया है।

बीजिंग ने एक तरफ हॉलीवुड फिल्मों की रिलीज को कम करने का फैसला किया है तो दूसरी तरफ अमेरिकी रक्षा उद्योग को सप्लाई किए जाने वाले दुर्लभ खनिजों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। चीन द्वारा दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध से अमेरिकी डिफेंस इंडस्ट्री में खलबली मच गई है क्योंकि ये खनिज अमेरिकी लड़ाकू विमानों और अमेरिकी वायु सेना की अगली पीढ़ी के बेड़े की रीढ़ हैं। बता दें कि बोइंग से लेकर फाइटर जेट, F-47 और F-22 और अमेरिकी लड़ाकू विमानों का नेक्स्ट जेनरेशन एयर डोमिनेंस (NGAD) कार्यक्रम चीन द्वारा सप्लाई किए जाने वाले सामानों पर ज्यादा निर्भर है।

ये भी पढ़ें :  संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती आज, मुख्यमंत्री बघेल राजधानी और भिलाई में आयोजित कई कार्यक्रमों में होंगे शामिल

किन-किन दुर्लभ खनिजों पर बैन?
चीन ने जिन दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर बैन लगाया है, उनमें डिस्प्रोसियम, सैमरियम, गैडोलीनियम, टेरबियम, ल्यूटेटियम, स्कैंडियम और यिट्रियम शामिल हैं। बता दें कि डिस्प्रोसियम उच्च तापमान वाले मैग्नेट में उपयोग किया जाता है। चूंकि जेट इंजन और इस तरह की चीजों को उच्च तापमान वाले मैग्नेट की दरकार होती है इसलिए डिस्प्रोसियम का इस्तेमाल किया जाता है। यह खनिज तत्व उच्च तापमान पर भी मैग्नेट का चुंबकीय गुण बनाए रखने में सहायक होता है। इसी तरह यिट्रियम उच्च तापमान वाले जेट इंजन कोटिंग्स, हाई फ्रीक्वेंसी वाले रडार सिस्टम और सटीक लेजर के लिए जरूरी है। यह विमान के इंजन को उड़ान के बीच में पिघलने से रोकता है और टर्बाइन ब्लेड पर थर्मल बैरियर कोटिंग की सुविधा देता है। इसके अलावा टाइटेनियम, टंगस्टन और नियोबियम जैसे मेटल्स लड़ाकू विमानों को हीट रेसिस्टेन्ट बनाने, उसकी संरचना को आकार देने और स्टील्थ कोटिंग्स में मददगार होते हैं।

ये भी पढ़ें :  बांग्लादेश में 7,294 लोगों की मौत पर कहा- 'हम इसकी जिम्मेदारी लेते हैं', यूनुस सरकार ने मानी गलती!

डिफेंस इंडस्ट्री के अलावा और कहां इस्तेमाल?
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि ये दुर्लभ खनिज डिफेंस इंडस्ट्री के अलावा कम्प्यूटर, चिप निर्माण और इलेक्ट्रिकल वाहनों के निर्माण लिए भी जरूरी हैं। गैलियम रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के निर्माण में सहायक है। इसका इस्तेमाल AI और उपग्रह एवं अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में इस्तेमाल होने वाले सेमीकंडक्टर्स और माइक्रोचिप्स में भी जरूरी है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अमेरिका में ऐसे दुर्लभ खनिजों का 70 फीसदी हिस्सा चीन से आयात होकर आता है।

ये भी पढ़ें :  छत्तीसगढ़: मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को लोक पर्व छेरछेरा की दी बधाई, शुभकामनाएं...

रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि चीन के अलावा रूस और ईरान भी ऐसे खनिजों के भंडार पर नियंत्रण रखते हैं। कोलोराडो स्कूल ऑफ माइंस में प्रोफेसर टॉम ब्रैडी के मुताबिक, "ये मिनरल्स निश्चित रूप से चीन के तरकश में ऐसे तीर हैं जो ट्रंप लगातार बढ़ते टैरिफ का जवाब दे सकते हैं।"

Share

क्लिक करके इन्हें भी पढ़ें

Leave a Comment