मध्यप्रदेश में 8 वर्ष बाद होंगे 5 चरणों में सहकारी समितियों के चुनाव, नावों में पारदर्शिता के लिए कई कदम उठाए जाएंगे

भोपाल
मध्य प्रदेश में 50 लाख से अधिक किसानों की सदस्यता वाली प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (पीएसीएस) के चुनाव आठ वर्ष के लंबे अंतराल के बाद अब होने जा रहे हैं। हाई कोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद राज्य सरकार ने इन चुनावों को प्राथमिकता दी है। महाधिवक्ता कार्यालय ने इसे अति आवश्यक बताते हुए पांच चरणों में चुनाव कराने का फैसला किया है, जो एक मई से सात सितंबर 2025 के बीच संपन्न होंगे। यह चुनाव गैर दलीय आधार पर होंगे, लेकिन कांग्रेस और भाजपा ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं।
 
हाई कोर्ट के निर्देशों ने बढ़ाया दबाव
प्रदेश में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव आखिरी बार 2013 में हुए थे, जिनका कार्यकाल 2018 में समाप्त हुआ। नियमानुसार छह माह पहले चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन विधानसभा चुनाव, किसान कर्ज माफी और अन्य कारणों से यह लगातार टलता रहा।
कांग्रेस और शिवराज सरकारों के कार्यकाल में भी यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी। इस बीच, वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर प्रशासकों की नियुक्ति की गई, लेकिन सहकारी अधिनियम के अनुसार यह व्यवस्था अधिकतम एक साल तक ही वैध थी।
चुनाव न होने से असंतोष बढ़ा और हाई कोर्ट की जबलपुर व ग्वालियर खंडपीठ में कई याचिकाएं दायर हुईं। मार्च में महाधिवक्ता कार्यालय ने सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव और सहकारिता विभाग को सुझाव दिया कि चुनाव जल्द कराना जरूरी है। इसके बाद राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने कार्यक्रम घोषित किया।

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पुनर्गठन के बाद पहले चरण में चुनाव
चुनाव कार्यक्रम के तहत पहले चरण में उन समितियों को शामिल किया जाएगा, जो पुनर्गठित हो चुकी हैं। भारत सरकार के सहकारिता क्षेत्र के विस्तार के निर्देशों के कारण पहले पुनर्गठन पर जोर दिया गया, लेकिन अब हाई कोर्ट के दबाव में प्रक्रिया तेज की गई है।
निर्वाचन प्राधिकारी ने स्पष्ट किया कि सभी चरणों में व्यवस्थित ढंग से मतदान होगा। सबसे पहले रजिस्ट्रीकरण व निर्वाचन अधिकारी को सदस्यता सूची सौंपी जाएगी, जिसके बाद दावा-आपत्ति का निराकरण कर अंतिम सूची जारी होगी। महिलाओं के लिए संचालक मंडल में पद आरक्षित होंगे। आमसभा की सूचना के साथ नामांकन और चुनाव प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

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कांग्रेस-भाजपा का दखल
भले ही सहकारिता चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हों, लेकिन राजनीतिक दलों की इसमें गहरी दिलचस्पी रहती है। कांग्रेस ने पूर्व मंत्रियों भगवान सिंह यादव और अरुण यादव के नेतृत्व में एक समिति बनाई है, जो चुनावी रणनीति तैयार कर रही है।
वहीं, भाजपा का सहकारिता प्रकोष्ठ भी अपने समर्थकों को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य संस्थाओं में प्रतिनिधि बनाने के लिए सक्रिय है। दोनों दल गांव स्तर से लेकर राज्य स्तर तक सहकारी संस्थाओं में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं।

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चुनाव की प्रक्रिया
चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए कई कदम उठाए जाएंगे। सदस्यता सूची प्रकाशन के बाद विशेष साधारण सम्मेलन बुलाकर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रतिनिधियों का चयन होगा। पांच चरणों का कार्यक्रम इस प्रकार है: पहला चरण (1 मई-23 जून), दूसरा चरण (13 मई-4 जुलाई), तीसरा चरण (23 जून-22 अगस्त), चौथा चरण (5 जुलाई-31 अगस्त), और पांचवां चरण (14 जुलाई-7 सितंबर)। यह प्रक्रिया समितियों के पुनर्गठन और किसानों की सहभागिता को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।

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