चंबल की बेटी मुक्ता सिंह बनीं सेना में लेफ्टिनेंट, OTA गया से इतिहास रचने वाली पहली महिला कैडेट

ग्वालियर
 चंबल की धरती को वीरों की भूमि कहा जाता है। अब इसी धरती की एक बेटी ने देश का नाम रोशन किया है। ग्वालियर की मुक्ता सिंह भारतीय थल सेना में लेफ्टिनेंट बन गई हैं। बिहार के गया स्थित ऑफिसर ट्रेनिंग एकेडमी (ओटीए) में आयोजित पासिंग आउट परेड में उन्होंने ओवरऑल ऑर्डर ऑफ मेरिट में तीसरा स्थान प्राप्त कर कांस्य पदक हासिल किया। विशेष बात यह है कि वे ओटीए गया से कांस्य पदक पाने वाली पहली महिला ऑफिसर कैडेट बनी हैं।

ग्वालियर की रहने वाली हैं मुक्ता सिंह

मुक्ता सिंह मूल रूप से ग्वालियर की रहने वाली हैं, हालांकि उनका जन्म भिंड स्थित ननिहाल में हुआ। उनके पिता राजबीर सिंह भारतीय वायुसेना में अधिकारी रह चुके हैं, जबकि उनकी मां बृजमोहिनी यादव खेल जगत से जुड़ी रहीं। देशभक्ति का जज़्बा परिवार में पहले से ही था, जिसका असर मुक्ता के जीवन पर भी पड़ा। पिता ने बेटी के जन्म के समय ही तय कर लिया था कि वह डिफेंस में जाएगी और नामकरण के समय ही उसका नाम ‘मुक्ता’ रखा गया।

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इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया

मुक्ता ने इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन ग्वालियर से पूरी की और मालनपुर की एक फैक्ट्री में कुछ समय नौकरी भी की। लेकिन बचपन से ही डिफेंस फोर्सेज में जाने का सपना उन्हें प्रेरित करता रहा। फिजिकल ट्रेनिंग के लिए उन्होंने अपने ननिहाल भिंड में मामा राधे गोपाल यादव से तैराकी व अन्य ट्रेनिंग ली। उनके नाना हरबीर सिंह यादव का सपना था कि घर से कोई आर्मी में जाए, जो अब मुक्ता ने पूरा किया।

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तीसरी बार में मिली सफलता

वहीं, मुक्ता सिंह सफर आसान नहीं था। शुरुआती दो प्रयासों में मेरिट में जगह नहीं मिली, लेकिन तीसरे प्रयास में उन्होंने शॉर्ट सर्विस कमीशन टेक्निकल महिला-32 कोर्स में ऑल इंडिया-1 रैंक हासिल कर सफलता पाई। शुरुआत में प्रशिक्षण चेन्नई ओटीए में हुआ, बाद में कोर्स बिहार के गया ओटीए में ट्रांसफर कर दिया गया।

यहां पर उनकी मेहनत ने उन्हें लीडरशिप के कई मौके दिलाए। अकादमी अंडर ऑफिसर (AUO), जूनियर अंडर ऑफिसर (JUO) और बटालियन अंडर ऑफिसर (BUO) जैसे पदों पर रहते हुए उन्होंने अपनी प्रतिभा साबित की।

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तीन बार चोट भी लगी

तीन बार चोटों के कारण कोर्स दोबारा शुरू करने के बावजूद उसने हार नहीं मानी। आखिरकार 6 सितंबर को आयोजित पासिंग आउट परेड में अपनी मेहनत और लगन के दम पर तीसरा स्थान हासिल कर इतिहास रच दिया। उन्हें 118 इंजीनियर रेजिमेंट में कमीशन मिला है। ग्वालियर और चंबल की यह बेटी आज पूरे देश का गर्व बनी हुई है और जल्द ही अपने गृह नगर ग्वालियर लौटने वाली हैं।

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