नई दिल्ली
8 नवंबर को बीजेपी के सबसे सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी का जन्मदिन था. देश भर के प्रमुख नेताओं ने हमेशा की तरह बधाई दी, लेकिन कांग्रेस नेता शशि थरूर विवादों में आ गए. शुभकामनाओं में लालकृष्ण आडवाणी के बारे में शशि थरूर की राय कुछ लोगों को रास नहीं आईं. करीब करीब वैसे ही जैसे एक जमाने में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को लालकृष्ण आडवाणी का सेक्युलर बताया जाना बहुतों को हजम नहीं हुआ.
98 साल के लालकृष्ण आडवाणी के बारे में सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय हेगड़े को शशि थरूर की राय नागवार गुजरी, तो कांग्रेस सांसद ने आगे बढ़ते हुए और अपनी दलील को दमदार बनाने के लिए आडवाणी की तुलना दो पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से कर डाली – और लहजा ऐसा कि कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर शशि थरूर के बयान से दूरी बना ली.
हाल ही में, शशि थरूर ने भारतीय राजनीति में वंशवाद पर एक लेख लिखा था जिस पर उनके पहले के बयानों की ही तरह विवाद हुआ. शशि थरूर ने वैसे तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक वंशवाद की राजनीति का हवाला दिया था, लेकिन सबसे ऊपर चर्चा थी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और बिहार चुनाव में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव की.
शशि थरूर के ताजा बयान पर कांग्रेस ने तो अपनी राय जाहिर कर ही दी है, बीजेपी की प्रतिक्रिया सामने आना बाकी है – वैसे भी 2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से लगता तो यही है कि लालकृष्ण आडवाणी तो बस सम्मान की मूर्ति बनाकर पूजे जाते रहे हैं. मार्गदर्शक मंडल तो अब नाम मात्र भी नहीं बचा है, लेकिन 2024 में राम मंदिर उद्घाटन समारोह से भी उनको दूर ही रहना पड़ा.
शशि थरूर के बयान पर विवाद क्यों?
लालकृष्ण आडवाणी के 98वें जन्मदिन के मौके पर शशि थरूर ने सोशल साइट X पर शुभकामनाएं देते हुए लिखा, लालकृष्ण आडवाणी जी को उनके 98वें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं! जनसेवा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, उनकी विनम्रता और शालीनता और आधुनिक भारत की दिशा तय करने में उनकी भूमिका अमिट है. एक सच्चे राजनेता, जिनका सेवामय जीवन अनुकरणीय रहा है.
विरोध के स्वर अक्सर शशि थरूर को कांग्रेस के भीतर से सुनने पड़ते हैं, लेकिन ये बाहर से था. सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय हेगड़े ने शशि थरूर के बयान पर कड़ा विरोध जताया. 'माफ कीजिए मि. थरूर' के साथ संजय हेगड़े ने अपनी पोस्ट की शुरुआत की, और लेखक खुशवंत सिंह का हवाला देते हुए लिखा, नफरत के बीज फैलाना जनसेवा नहीं है.
संजय हेगड़े ने आगे लिखा, रथयात्रा कोई एक वाकया नहीं थी. वो भारतीय गणराज्य के बुनियादी सिद्धांतों को पलटने की एक लंबी यात्रा थी. 2002 और 2014 की जमीन उसी यात्रा ने तैयार की, और उसके बाद की राजनीति को भी दिशा दी. जैसे द्रौपदी का अपमान महाभारत की पृष्ठभूमि बना, वैसे ही रथयात्रा और उसकी हिंसक विरासत आज तक देश की नियति को सताती रही है. अपने मौजूदा शरशय्या से भी उनकी तरह से कोई राजधर्म नहीं बताया गया.
शशि थरूर ने संजय हेगड़े को जवाब देते हुए उनकी राय से सहमति तो जताई, लेकिन अपनी बात को वजन देने के लिए अपनी ही कांग्रेस पार्टी के दो नेताओं जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि किसी का भी मूल्यांकन उससे से जुड़ी किसी एक घटना के आधार पर नहीं किया जा सकता.
शशि थरूर ने X पर लिखा, 'संजय हेगड़े आपकी बात से सहमत हूं, लेकिन आडवाणी की लंबी सेवा को एक वाकये तक सीमित करना, चाहे वो कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हो गलत है. नेहरू के पूरे राजनीतिक करियर का आकलन चीन की नाकामी के आधार पर नहीं किया जा सकता, और न ही इंदिरा गांधी के करियर का मूल्यांकन सिर्फ इमरजेंसी की वजह से किया जा सकता है… मेरा मानना है कि हमें आडवाणी जी के प्रति भी यही शिष्टाचार दिखाना चाहिए.'
कांग्रेस पर कसा 'नाजी' वाला तंज
थरूर के बयान पर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा, "कांग्रेस पार्टी को अपना नाम 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' से बदलकर 'इंदिरा नाजी कांग्रेस' कर लेना चाहिए, क्योंकि यह इंदिरा गांधी की आपातकालीन मानसिकता और नाजी व्यवहार का तरीका है।" दरअसल, खेड़ा ने थरूर के बयान से कांग्रेस पार्टी को किनारे करते हुए कहा था, हमेशा की तरह थरूर अपनी निजी हैसियत से बोल रहे हैं।' इतना ही नहीं उन्होंने थरूर के इस बयान को कांग्रेस की लोकतांत्रिक भावना बताते हुए कहा कि एक कांग्रेस सांसद और सीडब्ल्यूसी सदस्य के रूप में काम करते हुए भी थरूर ऐसे बयान देते रहते हैं, जो कि कांग्रेस की विशिष्ट लोकतांत्रिक और उदारवादी भावना को दर्शाता है।
कांग्रेस की तरफ से शशि थरूर के बयान पर जारी की गई इस प्रतिक्रिया पर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए पूनावाला मुख्य विपक्षी दल की मंशा पर ही सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा, "हम सभी सार्वजनिक जीवन में शिष्टाचार बनाए रखते हैं। लेकिन इसी शिष्टाचार के लिए कांग्रेस पार्टी ने उनके (थरूर) के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है। यह कांग्रेस की असहिष्णुता की भावना को दर्शाता है। उनके लिए कोई भी प्रतिद्वंद्वी दुश्मन जैसा है।"
क्या कहा था थरूर ने?
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के 98वें जन्मदिन पर उनके साथ एक तस्वीर पोस्ट करते हुए थरूर ने उनकी तारीफ की थी। उन्होंने लिखा, "उनकी (आडवाणी) जनसेवा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता, विनम्रता और शालीनता तथा आधुनिक भारत की दिशा तय करने में उनकी भूमिका अमिट है। एक सच्चे राजनेता जिनका सेवामय जीवन अनुकरणीय रहा।"
थरूर के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया था। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि किसी के पूरे जीवन को किसी एक घटना के आधार पर नहीं देखना चाहिए। जैसे नेहरू जी के जीवन को चीन से हार के लिए नहीं देख सकते, इंदिरा जी के जीवन को केवल आपातकाल के लिए याद नहीं कर सकते। ठीक उसी प्रकार का शिष्टाचार हमें आडवाणी जी के लिए भी रखना चाहिए।
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस पार्टी थरूर के विरोध में आई हो और भाजपा समर्थन में। ऑपरेशन सिंदूर के पहले धीमे शब्दों में और उसके बाद खुलकर कांग्रेस सांसद थरूर भाजपा और पीएम मोदी की नीतियों की प्रशंसा करते नजर आए हैं। इसकी वजह से उनके अपनी पार्टी के साथ संबंध लगातार नीचे होते जा रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब थरूर संसदीय प्रतिनिधिमंडल के साथ विदेश दौरे पर भी गए थे, उस वक्त भी कांग्रेस पार्टी के नेताओं की तरफ से उनके ऊपर लगातार हमले किए जा रहे थे। हालांकि, इसके बाद भी थरूर इस समय कांग्रेस में हैं और लगातार अपना काम कर रहे हैं।
कांग्रेस ने बता दिया, बीजेपी को कैसा लगेगा?
बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की तारीफ के साथ साथ नेहरू और इंदिरा गांधी से उनकी तुलना पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा है, हमेशा की तरह, डॉक्टर शशि थरूर अपनी बात कह रहे हैं, और कांग्रेस अपने आप को उनके बयान से अलग करती है… कांग्रेस सांसद और CWC सदस्य के रूप में उनका ऐसा करना कांग्रेस की विशिष्ट लोकतांत्रिक और उदारवादी भावना को दर्शाता है.
भले ही कांग्रेस को शशि थरूर की ये दलील अच्छी लगी हो कि चीन के साथ जंग के मसले पर नेहरू और इमरजेंसी को लेकर इंदिरा गांधी के योगदानों समेट नहीं देना चाहिए, लेकिन किसी भी सूरत में लालकृष्ण आडवाणी से अपने नेताओं की तुलना कांग्रेस को अच्छी नहीं लगने वाली.
और वैसे ही, भले ही मौजूदा बीजेपी नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी को सम्मान की मूर्ति मात्र के रूप में देखता रहा है, लेकिन कांग्रेस नेताओं से उनकी तुलना बीजेपी के वैचारिक एजेंडे के खिलाफ चला जाता है. नए दौर की बीजेपी को तो लालकृण्ष आडवाणी का वो बयान भी अच्छा नहीं लगा होगा, जिसमें बीजेपी नेता ने देश में फिर से इमरजेंसी की आशंका जताई थी.
2014 के आम चुनाव से पहले शशि थरूर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जो भी चुनावी तकरार हुई हो, लेकिन राष्ट्रहित के मुद्दों पर कांग्रेस नेता का स्टैंड बीजेपी नेतृत्व को अच्छा लगता है. ऐसे कई मौके देखे गए हैं, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शशि थरूर की तारीफ की है. मोदी ने तो कांग्रेस नेतृत्व के विदेश नीति की समझ का मजाक उड़ाते हुए भी भरी संसद में शशि थरूर की तारीफ कर डाली है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद से तो शशि थरूर बीजेपी की आंखों के तारे ही बने हुए हैं. पाकिस्तान के खिलाफ सरकार की तरफ से विदेश दौरे पर भेजे गए प्रतिनिधिमंडल में तो शशि थरूर छाए ही रहे – लेकिन आडवाणी के साथ नेहरू-इंदिरा की तुलना करके शशि थरूर ने लगता है दोनों पक्षों की नाराजगी मोल ली है.


