मध्य प्रदेश में 3 वर्षों में 37.5 फीसदी मदरसे हुए बंद, क्या हैं इसकी वजहें?

भोपाल
मध्य प्रदेश के विदिशा शहर के बरकतुल्लाह मदरसा पर बंद होने का खतरा है। बताया जाता है कि हिंदू छात्रों के नामांकन और सरकारी लाभ प्राप्त करने के लिए अधिक नामांकन दिखाने की वजह से उस पर ऐक्शन लिया जा सकता है। स्कूली शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि हमने पाया है कि मध्याह्न भोजन के लिए फंड हासिल करने के खातिर गैर-मुस्लिम छात्रों को मदरसे में नामांकित किया गया था।
धर्मांतरण नहीं है वजह

अधिकारी जो जांच के निष्कर्षों से अवगत हैं, उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा धर्मांतरण के लिए नहीं किया गया था। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने दावा किया था कि मुस्लिम शैक्षणिक संस्थान में गैर-मुस्लिम छात्र हैं। बरकतुल्लाह मदरसा चलाने वाले मंजीत कपूर ने कहा, 'मैं केवल गैर-मुस्लिम स्टूडेंट की मदद कर रहा था। मदरसा मुस्लिम छात्रों को आधुनिक शिक्षा देने के लिए खोला गया था, लेकिन बाद में यह सभी धर्मों के छात्रों के लिए शैक्षिक स्थल बन गया।
बच्चे आगे कैसे जारी रखेंगे पढ़ाई?

मदरसे में पढ़ने वाली छात्रा की नानी ने कहा कि उसकी नातिन के लिए दूसरे स्कूल में दाखिला लेना मुश्किल होगा, क्योंकि वह बीच में ही पढ़ाई छोड़ रही है। नाम नहीं बताने की शर्त पर महिला ने कहा कि मुझे नहीं पता कि बच्ची अपनी पढ़ाई आगे कैसे जारी रखेगी, क्योंकि सरकारी स्कूल ने पूर्व में उसे दाखिला नहीं दिया था।
577 मदरसों का रजिस्ट्रेशन रिन्यूअल रोका

बरकतुल्लाह मदरसा राज्य के 1,012 मदरसों में से एक है, जिसे पिछले तीन वर्षों में बंद होने का सामना करना पड़ा है। साल 2021 में सूबे में मदरसों की संख्या 2,689 थी। अधिकारियों ने कहा कि गैर-मुस्लिम छात्रों के नामांकन, खराब बुनियादी ढांचे और सरकारी लाभ पाने के लिए फर्जी नामांकन के आरोपों में अन्य 577 मदरसों के रजिस्ट्रेशन का रिन्यूअल रोक दिया गया है। मदरसों के रजिस्ट्रेशन को केस-टू-केस आधार पर रोका जा रहा है। कुल मिलाकर देखें तो मध्य प्रदेश में 3 वर्षों के दौरान 37.5 फीसदी मदरसे बंद हुए हैं।
1,677 मदरसों का नए सिरे से निरीक्षण

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वहीं एमपी मदरसा बोर्ड के प्रशासनिक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि मौजूदा वक्त में मध्य प्रदेश में आधुनिक शिक्षा के साथ धार्मिक ज्ञान प्रदान करने के लिए केवल 1,100 मदरसे ही चलाए जा रहे हैं। राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने कहा कि सभी 1,677 मदरसों का नए सिरे से निरीक्षण किया जा रहा है। इनका पंजीकरण उपलब्ध सुविधाओं और रिजिस्टर्ड छात्रों की संख्या के आधार पर किया जाएगा।
NCPCR टीम ने किया था दौरा

अक्टूबर 2023 में, विदिशा के बाल अधिकार कार्यकर्ता मनोज कौशल ने NCPCR को पत्र लिखकर दावा किया था कि सूबे के एक आदिवासी क्षेत्र के मदरसों में गैर-मुस्लिम छात्रों का नामांकन किया गया है। इस पर NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो के नेतृत्व में एक टीम ने दो मदरसों, बरकतुल्लाह और मरियम दीनियात का दौरा किया था। NCPCR की टीम ने इन मदरसों में 48 गैर-मुस्लिम छात्रों को पाया था।
पूर्व सीएम शिवराज ने दिया था जांच का आदेश

यही नहीं NCPCR ने राज्य सरकार को फरवरी 2023 और अप्रैल 2024 को दो बार और पत्र लिखा था। इसमें उसने मदरसों का निरीक्षण करने और गैर-मुस्लिम छात्रों का नामांकन करने वालों के खिलाफ ऐक्शन की मांग की थी। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य सरकार की ओर से हर साल 25,000 रुपये अनुदान प्राप्त करने वाले मदरसों का निरीक्षण करने का निर्देश दिया था।
पढ़ते पाए गए 9,500 से अधिक गैर-मुस्लिम छात्र

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मदरसा बोर्ड के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि साल 2023 में जांच किए गए कुल मदरसों में से आधे से अधिक में 9,500 से अधिक गैर-मुस्लिम छात्र पढ़ते पाए गए थे। हालांकि, विधानसभा चुनाव के लिए लागू आदर्श आचार संहिता के कारण इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। दिसंबर 2023 में नई सरकार ने शपथ ली, लेकिन उसके तुरंत बाद लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो गया। आखिरकार, 16 अगस्त को राज्य सरकार ने मदरसों पर नकेल कसने का फैसला किया।
वित्तीय अनियमितता बड़ी वजह

फिर राज्य स्कूल शिक्षा विभाग की आयुक्त शिल्पा गुप्ता ने मदरसों में गैर-मुस्लिम छात्रों के सत्यापन के लिए एक आदेश जारी किया। 28 अगस्त को एक अन्य आदेश में, स्कूल शिक्षा विभाग ने जिला कलेक्टरों को कहा कि सुनिश्चित किया जाए कि मदरसा बोर्ड से संबद्ध सभी मदरसे तय दिशा-निर्देशों का पालन करें। स्कूल शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि वित्तीय अनियमितताओं के कारण मदरसे बंद किए गए।
केवल कागजों पर ही नाम चल रहा था नाम

मामले को उठाने वाले बाल अधिकार कार्यकर्ता मनोज कौशल ने कहा कि गैर-मुस्लिम छात्रों के नामांकन के जरिये वित्तीय अनियमितताओं के कारण बंद होने वाले मदरसों की संख्या बढ़ सकती है। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि उन्हें कोई भी ऐसा छात्र नहीं मिला जो यह कह सके कि उसे पढ़ने के लिए मजबूर किया गया था। केवल कुछ गैर-मुस्लिम छात्र ही मदरसे गए थे, जबकि उनमें से अधिकांश का केवल कागजों पर ही नाम चल रहा था। मिड-डे मील का लाभ पाने के लिए बच्चों की संख्या बढ़ाई गई थी।
प्रति छात्र हर दिन 6 से 8 रुपये देती है सरकार

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बता दें कि मिड-डे मील के तहत मदरसे को प्रति छात्र हर दिन 6 से 8 रुपये मिलते हैं। मदरसा बोर्ड और मदरसा संघ ने कहा कि वे 2016 से शिक्षकों को वेतन, किताबें और वर्दी देने के लिए अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने की योजना (एसपीईएमएम) के तहत केंद्र सरकार से सहायता प्राप्त न होने के कारण पहले से ही वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। वहीं एमपी मदरसा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर सैयद इमाद-उद्दीन ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस्लामी शिक्षा के साथ छात्रों को आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा प्रदान करने के लिए एसपीईएमएम शुरू किया। यह निर्णय मुसलमानों के उत्थान के लिए था और गैर-मुस्लिम छात्रों को मदरसों में दाखिला नहीं दिया जा सकता था।
गैर-मुस्लिम छात्रों को मजहबी शिक्षा गलत

स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने कहा- हम मदरसों में गैर-मुस्लिम छात्रों को मजहबी शिक्षा नहीं देने देंगे। हम ऐसे संस्थानों को बंद करेंगे। छात्रों के नामांकन के बारे में सत्यापन की रिपोर्ट और नामांकन के पीछे के कारण से सारी बातें स्पष्ट हो जाएंगी। राज्य बाल अधिकार आयोग के सदस्य ओमकार सिंह ने कहा कि फिलहाल सरकार केवल रजिस्टर्ड मदरसों पर फोकस कर रही है। सरकार के पास गैर-पंजीकृत मदरसों से संबंधित कोई डेटा और मैपिंग नहीं है, जो मस्जिदों और अन्य स्थानों पर केवल मजहबी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। ऐसे मदरसों की भी मैपिंग की जानी चाहिए।

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