क्या आप जानते है मकर संक्रांति पर क्यों कहते है खिचड़ी

हिंदू धर्म में सभी त्योहारों की तरह मकर संक्रांति का खास महत्व है. इस दिन सूर्य देव धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं. पूरे देश में यह पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. वहीं कुछ राज्यों में इस खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. क्योंकि इस दिन खिचड़ी खाना और दान करने की परंपरा है.

वैदिक पंचांग के अनुसार, साल 2025 में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मंगलवार के दिन मनाया जाएगा इस दिन सूर्य देव सुबह 9 बजकर 3 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे.

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कैसे शुरू हुई खिचड़ी खाने की परंपरा?
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परंपरा से जुड़ी एक कहानी प्रचलित हैं. जिसके अनुसार, जब खिलजी ने देश पर आक्रमण किया तो चारों तरफ लगातार संघर्ष चल रहा था. ऐसे में योगी मुनियों को अपनी जमीनों को बचाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था. कई बार वे भूखे भी रह जाते थे. तब एक दिन बाबा गोरखनाथ ने उनकी समस्या को हल करने के लिए काली उड़द की दाल में चावल, घी और कुछ सब्जियां डालकर पका दिया ताकि उनका पेट भी भर जाए और इसे बनाने में ज्यादा समय भी नहीं लगा.

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बाबा गोरखनाथ ने दिया नाम
जब खिचड़ी बनकर तैयार हुई तो सबको बहुत पसंद आयी और इससे योगियों को आसानी से भूख मिटाने का रास्ता भी मिल गया. साथ ही काफी स्वादिष्ट और त्वरित ऊर्जा देने वाला भी होता था. इस व्यंजन को बाबा गोरखनाथ ने खिचड़ी का नाम दिया. जिस दिन इसे पहली बार तैयार किया गया था, उस दिन मकर संक्रांति का दिन था. इसके बाद से तमाम जगहों पर मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा शुरू हो गई.

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गोरखपुर में खिचड़ी मेला
मकर संक्रांति के दिन हर साल गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेले का आयोजन किया जाता है. जिसकी शुरुआत बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाकर की जाती है. इसके बाद पूरे मेले में खिचड़ी को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. इस दिन गोरखनाथ मंदिर खिचड़ी चढ़ाई भी जाती है.

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