अब हड्डी के फैक्चर का होगा ज्यादा सटीक इलाज, एआइ मॉडल से उन्नत और उचित प्रकार हो सकेगा इलाज

मंडी
हड्डी का फैक्चर जितना दर्दनाक होता है, उसका इलाज भी उतना ही चुनौतीपूर्ण हो जाता है। सही इंप्लांट (कृत्रिम अंग) व तकनीक का चयन न केवल सर्जरी की सफलता बल्कि मरीज के घाव भरने की प्रक्रिया (हीलिंग) को भी प्रभावित करता है। अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी ) गुवाहाटी के शोधार्थियों ने इसी चुनौती का समाधान ढूंढा है।

हर साल दो लाख होते हैं हड्डी के फैक्चर
शोधार्थियों ने इसके लिए एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) आधारित मॉडल विकसित किया है। भारत में हर वर्ष लगभग दो लाख जांघ की हड्डी के फैक्चर होते हैं। यह मॉडल जांघ व अन्य हड्डियों में फैक्चर के बाद ठीक होने की प्रक्रिया की ज्यादा सटीक जानकारी देने में सक्षम है। यह न सिर्फ रोगी के उपचार में लगने वाले समय को कम करेंगी बल्कि सर्जरी के खर्च को भी कम करने में मदद मिलेगी। इस एआइ मॉडल के प्रयोग से हड्डी रोग विशेषज्ञ विभिन्न फैक्चर व उनके उपचार की रणनीति के नतीजों का आकलन कर मरीज की व्यक्तिगत शारीरिक बनावट व फैक्चर के प्रकार के अनुसार सबसे उपयुक्त उपचार पद्धति चुन सकेंगे।

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आईआईटी गुवाहाटी के बायोसाइंसेज एवं बायोइंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुप्तिक चंदा व उनकी टीम द्वारा विकसित यह एआइ मॉडल फिनाइट एलिमेंट एनालिसिस व फजी लॉजिक तकनीक का उपयोग करके हड्डी के विकास के मापदंडों का अध्ययन करता है।

इसमें स्क्रू फिक्सेशन तंत्रों के प्रभाव का भी अध्ययन किया गया है। शोध अमेरिका के ओपनसोर्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। एआइ आधारित सिमुलेशन मॉडल सर्जरी से पहले ही चिकित्सकों को सही इंप्लांट या तकनीक चुनने में मदद करेगा। इसमें बायोलाजिकल व मरीज विशिष्ट मापदंडों के अलावा धूमपान, मधुमेह जैसी स्वास्थ्य स्थितियों को भी ध्यान में रखा गया है।
 
सॉफ्टवेयर व ऐप विकसित करने की योजना
शोधार्थियों की टीम इस मॉडल के एल्गोरिदम पर आधारित एक सॉफ्टवेयर या मोबाइल एप भी अब विकसित करेगी। इसे अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में फैक्चर व इलाज प्रोटोकाल के हिस्से के रूप में इस्तेमाल किया सकेगा। आईआईटी के शोधार्थियों के साथ उत्तर पूर्वी इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विज्ञान संस्थान शिलांग के हड्डीरोग विशेषज्ञ डॉ. भास्कर बोर्गोहाईं व उनकी टीम ने भी इस मॉडल को विकसित करने में मदद की है।

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मॉडल लागू करने से पहले हो रहे पशु परीक्षण
एआइ माडल की सटीकता को प्रायोगिक अध्ययन और नैदानिक अवलोकनों के माध्यम से प्रमाणित किया गया है। इसकी विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए उत्तर पूर्वी इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विज्ञान संस्थान शिलांग के अस्थि रोग विशेषज्ञों के सहयोग से निरंतर सत्यापन अध्ययन किए जा रहे हैं। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि यह मॉडल नैदानिक अनुप्रयोगों के लिए पूरी तरह उपयुक्त और विश्वसनीय हो।

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वर्तमान में इस मॉडल को मानव रोगियों पर लागू करने से पहले पशु परीक्षण किए जा रहे हैं। अध्ययनों के दौरान इस माडल के नए आयामों पर भी शोध किया जा रहा है, जिससे इसके नैदानिक उपयोग की संभावनाओं को और बेहतर तरीके से समझा जा सके। इस एआइ मॉडल को लेकर जोनल अस्पताल मंडी के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेंद्र नेगी बताते हैं कि हर व्यक्ति के शरीर के अनुसार हड्डियों की बनावट भी अलग होती है।फैक्चर की स्थिति में किस मरीज में कौन सा इंप्लांट लगना है, सर्जरी के समय टेबल पर ही तय किया जाता है। एआइ माडल से इंप्लांट चुनने में पहले ही मदद मिलेगी।

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