वाशिंगटन
वेनेजुएला के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका ने कैरेबियन क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति को जबरदस्त तरीके से बढ़ा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एयरक्राफ्ट कैरियर ग्रुप ‘यूएसएस जेराल्ड फोर्ड’ को लैटिन अमेरिका भेजने का आदेश दिया, जो अब तक के किसी भी एंटी-नारकोटिक्स मिशन से बड़ा कदम माना जा रहा है। इसे वॉशिंगटन की अब तक की सबसे सशक्त सैन्य कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है।
इस तैनाती में शामिल हैं
5,000 से अधिक नाविक और कर्मी
75 फाइटर जेट
8 अतिरिक्त युद्धपोत
1 परमाणु पनडुब्बी
एफ-35 लड़ाकू विमान
विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम क्षेत्रीय देशों के लिए चिंता का विषय बन सकता है और अमेरिका के इरादों पर सवाल खड़े कर सकता है। ट्रम्प प्रशासन लंबे समय से निकोलस मादुरो की सरकार पर आरोप लगाता रहा है कि वे मादक पदार्थों के तस्करों को संरक्षण दे रही है और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है।
पेंटागन की प्रतिक्रिया
पेंटागन के प्रवक्ता सीन पर्नेल ने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि “यूएसएस साउथकॉम क्षेत्र में बढ़ी हुई अमेरिकी सैन्य उपस्थिति हमारी क्षमता बढ़ाएगी, ताकि हम अवैध गतिविधियों का पता लगा सकें, उन्हें रोक सकें और समाप्त कर सकें, जो अमेरिका और पश्चिमी गोलार्ध की स्थिरता के लिए खतरा हैं।” हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि एयरक्राफ्ट कैरियर कब लैटिन अमेरिका पहुंचेगा। कुछ दिनों पहले तक यह पोत यूरोप में जिब्राल्टर की खाड़ी से गुजर रहा था।
पिछली कार्रवाइयां
सितंबर 2025 की शुरुआत से अमेरिकी सेना ने कैरेबियन सागर में कथित ड्रग तस्करी जहाजों पर 10 हवाई हमले किए, जिनमें लगभग 40 लोग मारे गए। इनमें से कुछ मृतक वेनेजुएला के नागरिक थे।
वेनेजुएला का रिएक्शन
वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने बार-बार आरोप लगाया है कि अमेरिका उनकी सत्ता से हटाने की साजिश कर रहा है। अगस्त में, अमेरिकी प्रशासन ने मादुरो की गिरफ्तारी में मदद करने वाले सूचना प्रदाता के लिए पुरस्कार राशि को 2.5 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 5 करोड़ डॉलर कर दिया।
कोलंबिया के साथ तनाव
अमेरिका और कोलंबिया के रिश्ते भी तनावपूर्ण बने हुए हैं। ट्रम्प ने कोलंबियाई राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो को ‘ड्रग लीडर’ और ‘बुरा इंसान’ कहकर संबोधित किया, जिस पर बोगोटा ने कड़ी आपत्ति जताई। यह कदम अमेरिका की वेनेजुएला और लैटिन अमेरिका में नीति और सुरक्षा रणनीति में नए सिरे से बदलाव का संकेत है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में हलचल मच सकती है।


