भागवत का सुझाव: मुख्यधारा की शिक्षा में गुरुकुल जोड़ना जरूरी

नई दिल्ली

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष में आयोजित तीन दिवसीय संवाद के अंतिम दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सवाल-जवाब सत्र को संबोधित किया। विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख ने नई शिक्षा नीति की तारीफ करते हुए कहा, नई शिक्षा प्रणाली इसलिए शुरू की गई, क्योंकि हमें केवल राज्य नहीं चलाना है, हमें लोगों को चलाना है। पुरानी शिक्षा प्रणाली विदेशी आक्रमणकारियों ने बनाई थी। हम हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों के गुलाम रहे, जो उस समय के राजा थे। वे इस देश पर शासन करना चाहते थे, इसका विकास नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सभी प्रणालियां इस बात को ध्यान में रखते हुए बनाईं कि हम लोगों को गुलाम बनाए रखते हुए कैसे इस देश पर शासन कर सकते हैं…लेकिन अब हम स्वतंत्र हैं। इसलिए नई शिक्षा प्रणाली इसलिए शुरू की गई।

संघ प्रमुख ने मुख्यधारा की शिक्षा को गुरुकुल शिक्षा से जोड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि गुरुकुल शिक्षा का मतलब आश्रम में रहना नहीं, बल्कि देश की परंपराओं को सीखना है। भागवत ने कहा, गुरुकुल शिक्षा का मॉडल फिनलैंड के शिक्षा मॉडल जैसा है। फिनलैंड में शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए अलग विश्वविद्यालय है। स्थानीय आबादी कम होने के कारण कई लोग विदेशों से आते हैं, इसलिए वे सभी देशों के छात्रों को स्वीकार करते हैं। वहां, आठवीं कक्षा तक की शिक्षा छात्रों की मातृभाषा में दी जाती है। इस दौरान कोई क्लास वर्क नहीं दिया जाता। दस छात्रोंं पर एक शिक्षक का औसत है।

संघ प्रमुख ने कहा, विदेशी नहीं, देश में इस्तेमाल होने वाली हर भाषा राष्ट्रभाषा है। सभी मातृभाषा के पास अपनी संस्कृति, अपनी विरासत है। सवाल संपर्क की भाषा पर सहमति बनाने की है। यह विदेशी नहीं होनी चाहिए। हमें मिलजुलकर तय करना होगा कि देश की संपर्क भाषा क्या होगी। इस दौरान उन्होंने संस्कृत की शिक्षा की वकालत करते हुए कहा कि चूंकि सारे ग्रंथ, उपनिषद इसी भाषा में लिखे गए, इसलिए संस्कृत के ज्ञान के बिना हम अपने देश को नहीं जान सकते। उन्होंने कहा कि अनुवाद ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ स्रोत नहीं है। गलत अनुवाद के कारण ही देश में कई भ्रांतियां पैदा हुई हैं।

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अंग्रेजी उपन्यास पढ़ें पर प्रेमचंद को न छोड़ें
भागवत ने कहा कि आप अंग्रेजी उपन्यास पढ़ें। हम अंग्रेज नहीं हैं, हमें अंग्रेज नहीं बनना है, लेकिन अंग्रेजी भाषा सीखने में क्या दिक्कत है? मुझे भी पिताजी ने कई अंग्रेजी उपन्यास पढ़ाए। इससे मेरे हिंदुत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन अंग्रेजी लेखकों को पढ़ें और प्रेमचंद जैसे भारतीय कहानीकारों को छोड़ दें, यह ठीक नहीं है।

आंदोलन का समर्थन नहीं करेंगे, पर स्वयंसेवक स्वतंत्र
भागवत ने फिर कहा कि राम मंदिर एकमात्र ऐसा आंदोलन था, जिसका संघ ने समर्थन किया था। वह उद्देश्य पूरा हुआ। संघ काशी-मथुरा पुनरुद्धार सहित किसी भी अन्य ऐसे अभियान का समर्थन नहीं करेगा। हालांकि भागवत ने स्पष्ट किया कि आरएसएस के स्वयंसेवक ऐसे आंदोलनों में शामिल होने के लिए स्वतंत्र हैं। हिंदू मानस में काशी-मथुरा और अयोध्या का महत्व है। दो जन्मभूमि हैं और एक निवास स्थान। स्वाभाविक है कि हिंदू समाज इसका आग्रह करेगा। हम कहते हैं बाकी जगह मंदिर और शिवलिंग मत ढूंढो। तीन का ही आग्रह है, तो उसे स्वीकार कर लो। यह भाईचारे व सौहार्द्र की दिशा में बड़ा कदम होगा।

किसी से भी परहेज नहीं, पर रुकावट उधर से ही
संघ प्रमुख ने कहा कि हमारे सभी सरकारों से संबंध ठीक हैं। हम सभी में परिवर्तन की संभावना देखते हैं। अच्छे कार्य के लिए किसी का भी समर्थन करने के लिए तैयार हैं। 1948 में संघ कार्यालय में आग लगाने के लिए मशाल लेकर निकलने वाले जयप्रकाश नारायण ने आपातकात के दौरान कहा कि संघ ही देश में परिवर्तन ला सकता है। दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जब संघ मुख्यालय आए तो संस्था के प्रति उनकी गलतफहमी दूर हुई। हमें किसी से परहेज नहीं है। रुकावट उधर से है तो हम इस इच्छा का सम्मान करते हुए रुक जाते हैं।

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शाश्वत सच को ठुकराने की कीमत चुकाई
संघ प्रमुख ने कहा कि अखंड भारत एक सत्य है। भारत से किनारा करने वाले देशों की हालत दुनिया से नहीं छिपी। इन देशों ने भारतवर्ष की एक संस्कृति, एक पूर्वज और एक मातृभूमि के शाश्वत सच को ठुकराने की कीमत चुकाई। उन्होंने कहा कि संघ ने हमेशा बंटवारे का विरोध किया।

संघ के संस्थापक को विश्वास था कि उस दौरान जिस महात्मा गांधी का पूरा देश अनुसरण कर रहा था, उन्होंने कहा था कि बंटवारा मेरी लाश पर होगा। बाद में गांधीजी ने इसे स्वीकार कर लिया। चूंकि उस समय संघ के पास ताकत नहीं थी, इसलिए बंटवारा रोकने के लिए यह संगठन कुछ नहीं कर सका था।

शिक्षा का मतलब यही…यह सोच बड़ी समस्या
संघ प्रमुख ने कहा कि सरकारी और निजी क्षेत्र मिल कर देश में 35 फीसदी से अधिक लोगों को नौकरी नहीं दे सकते। देश में शिक्षा का मतलब नौकरी और उसमें भी सरकारी नौकरी समझा जाता है। जब से श्रम को काम के आधार पर हेय की दृष्टि से देखा गया, तभी से समस्या उत्पन्न हुई। समस्या यह है कि कृषि की पढ़ाई करने वाला पर्याप्त खेती की जमीन के बाद भी लॉन ऑफिसर बनना पसंद करता है। श्रम के महत्व को भूलते हुए कई तरह के अहम कार्यों को नीच कार्य का दर्जा दिया गया। देश में स्वरोजगार की मजबूत भावना पैदा नहीं हुई।

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हथियार बढ़ाने पर
संघ शांति की बात करता है। हम बुद्ध के देश हैं, लेकिन हथियार बढ़ाने का मतलब युद्ध करना नहीं है। खुद की रक्षा करना भी है, क्योंकि दुनिया के सभी देश बुद्ध के देश नहीं हैं।

जनसांख्यिकी में बदलाव खतरनाक
भागवत ने कहा, देश के कई हिस्सों में घुसपैठ सहित अन्य कारणों से होने वाले जनसांख्यिकी बदलाव बेहद खतरनाक हैं। जनसांख्यिकी बदलाव का देश में बंटवारे के रूप में हमने दंश झेला है। भारत ही नहीं तिमोर, इंडोनेशिया समेत कई देशों ने इसके कारण अपने देश के मूल चरित्र और परंपरा पर खतरा महसूस किया है। भागवत ने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम की भारत की नीति और भारतवर्ष के एक डीएनए के आधार पर घुसपैठ को अनुमति नहीं दी जा सकती। देश में कोई विदेशी आना चाहता है, तो उसकी अनुमति लेना गलत नहीं है, क्योंकि सभी देश की अपनी व्यवस्था होती है।

अव्यवस्था बनी जाति व्यवस्था
भागवत ने कहा, संघ संविधान की ओर से तय अनिवार्य आरक्षण नीतियों का पूर्ण समर्थन करता है और जब तक आवश्यकता होगी, तब तक उनका समर्थन करता रहेगा। जो समाज या जाति हजारों साल से शोषण का शिकार रही, उसके लिए गैरवंचित समाज को 200 साल तक त्याग के लिए तैयार रहना होगा। शोषणमुक्त और समतायुक्त समाज समय की जरूरत है। जाति व्यवस्था पर संघ प्रमुख ने कहा कि हर वाद देश के विकास के लिए रुकावट है, इसमेंं जातिवाद भी शामिल है। किसी समय यह व्यवस्था थी, जो अब अव्यवस्था बन गई। ऐसा अपने वर्ण और जाति की सर्वश्रेष्ठता का भाव, श्रम के प्रति हेय दृष्टि के कारण आया।

 

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