उर्वशी मिश्रा, बिलासपुर
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे सहित सड़कों को मवेशी मुक्त करने और सटीक रोड मैप बनाने को लेकर चल रही जनहित याचिका पर सोमवार को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायाधीश रविन्द्र कुमार अग्रवाल की स्पेशल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई। जिसमें कोर्ट ने अपने पूर्व आदेश के परिपालन की जानकारी मांगी। जिसपर शासन ने अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ठाकुर के माध्यम से अपना पक्ष रखा। जिसमें कहा गया कि छत्तीसगढ़ में आवारा मवेशी से सड़कों को मुक्त करने और सटीक कार्य योजना को लेकर बनाई जाने वाली SOP के लिए कई विभागों ने जानकारी नहीं दी है, जिसके लिए शासन ने 2 सप्ताह का समय मांगा। जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई तय की है। वहीं राष्ट्रीय राजमार्गों और सड़कों पर आवारा पशुओं की समस्या को रोकने के लिए देश के अन्य 7 राज्यों द्वारा अपनाए गए तंत्र की जांच करने के लिए गठित समिति और उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत पर भी जवाब नहीं आया। इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शासन और अन्य विभागों को समय देते हुए अगली सुनवाई 17 जनवरी 2025 के लिए तय कर दी है।
पिछली 23 अक्टूबर 2024 के आदेश के परिपालन में छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य सचिव को राज्य के राजमार्गों और जिलों की सड़कों पर मवेशियों के आतंक की निगरानी और रोकथाम के लिए उठाए गए कदमों के संबंध में नया हलफनामा दायर करने का आदेश दिया था। जिसमें राज्य के संभागीय आयुक्तों से संभागवार सर्वेक्षण रिपोर्ट मांगी गई थी। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, बस्तर और सरगुजा के संभागीय आयुक्तों ने विस्तृत सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की। सर्वेक्षण रिपोर्ट में सड़कों के किनारे स्थित ग्राम पंचायतों और नगर निकायों की संख्या शामिल है, जहां पर्याप्त यातायात होता है। रिपोर्ट में घरेलू मवेशियों की संख्या और आवारा मवेशियों की संख्या भी शामिल है। उन ग्राम पंचायतों और नगर निकायों में आवारा पशुओं की समस्या के बारे में जागरूकता लाने के लिए सरकारी एजेंसियों ने पशु मालिकों के साथ बैठकें की थीं। आयोजित की गई बैठकों की संख्या को भी सर्वेक्षण रिपोर्ट में शामिल किया गया है। पहले के प्रस्ताव के अनुसार आवारा पशुओं के विश्राम के लिए सड़क के किनारे साफ-सफाई और समतलीकरण के लिए स्थान चिह्नित किए गए थे। ऐसे चिह्नित स्थानों की संख्या को सर्वेक्षण रिपोर्ट में शामिल किया गया है। पहले के प्रस्ताव के अनुसार सड़क से आवारा पशुओं को हटाने की जिम्मेदारी अधिकारियों को दी गई थी। इन तमाम कोशिश के बावजूद मवेशियों की सड़क में मौत और उनके कारण हो रही दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ने से परेशानी खड़ी है।