ट्रंप को चुनौती देंगे ये ‘पांडव’, जानें कैसे अमेरिका को उलटा पड़ सकता है टैरिफ वार

नई दिल्ली

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद को पूरी दुनिया का 'चौधरी' समझते हैं। इन दिनों वो टैरिफ के तीरों से दुनिया को डराने की कोशिश में लगे हुए हैं। जो देश उनके मन की बात नहीं करता उस पर टैरिफ ठोक देते हैं। भारत पर ट्रंप ने 50 फीसदी टैरिफ लगाया है। लेकिन ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' वाली दादागीरी अब उनके लिए ही बोझ बन रही है। BRICS देशों भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ ने इन 'पांच पांडवों' को एकजुट कर दिया है, जो अब ट्रंप के खेल को पलटने की तैयारी में हैं। ट्रंप सोचते थे कि ये देश झुक जाएंगे, लेकिन इसके बजाय वे वैश्विक अर्थव्यवस्था को नए सिरे से गढ़ रहे हैं। यह टैरिफ युद्ध अब ट्रंप की सबसे बड़ी भूल साबित हो रहा है, क्योंकि BRICS की ताकत अमेरिका को अलग-थलग कर सकती है। आइए समझते हैं कैसे ट्रंप का दांव उन्हीं को उल्टा पड़ेगा।
ट्रंप का टैरिफ बम

ट्रंप ने 2025 में अपनी टैरिफ नीति को और आक्रामक करते हुए ब्रिक्स देशों को निशाना बनाया। भारत और ब्राजील पर 50% टैरिफ, चीन पर 30% (जो पहले 245% तक की धमकी थी), दक्षिण अफ्रीका पर 30% और रूस पर पहले से ही कड़े प्रतिबंधों के साथ 100% टैरिफ की मार। ट्रंप का दावा है कि ये कदम अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करने और रूस से तेल खरीदने वाले देशों को सबक सिखाने के लिए हैं। खास तौर पर भारत को रूस से तेल आयात करने की वजह से 25% अतिरिक्त टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जिससे कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया है। लेकिन ट्रंप की यह दादागीरी अब उनके लिए ही मुसीबत बन रही है।
पांच 'पांडव' हुए एक

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ट्रंप की धमकियों से तंग आकर ब्रिक्स के पांच संस्थापक देश भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका अब एक मंच पर आ रहे हैं। ये देश न केवल ट्रंप की नीतियों का जवाब देने के लिए रणनीति बना रहे हैं, बल्कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने की दिशा में भी कदम उठा रहे हैं। ब्रिक्स देशों की संयुक्त जीडीपी 26.6 ट्रिलियन डॉलर है, जो अमेरिका की 27.36 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लगभग बराबर है। इन देशों का वैश्विक जीडीपी में 35.6% योगदान और विश्व व्यापार में एक चौथाई हिस्सेदारी ट्रंप के लिए खतरे की घंटी है।
ब्राजील का तेवर: लूला का ट्रंप को करारा जवाब

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने ट्रंप की धमकियों को सिरे से खारिज कर दिया। लूला ने साफ कहा, 'मैं ट्रंप से बात नहीं करूंगा। जब ट्रंप बात करने को तैयार होंगे, मैं उनसे फोन पर बात करूंगा, लेकिन मैं खुद को अपमानित नहीं होने दूंगा।' लूला ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बातचीत को प्राथमिकता दी। लूला और मोदी ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 20 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है, जो ट्रंप की नीतियों के खिलाफ एकजुटता का साफ संदेश है।
भारत की कूटनीति, मोदी का मास्टरस्ट्रोक

भारत, जो ट्रंप के टैरिफ युद्ध का सबसे बड़ा शिकार बना, अब कूटनीतिक चालों से जवाब दे रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक के लिए चीन जाएंगे, जहां वे जिनपिंग के साथ ट्रंप के टैरिफ का तोड़ निकालने पर चर्चा करेंगे। भारत ने ट्रंप के 50% टैरिफ को 'अनुचित, अन्यायपूर्ण और तर्कहीन' करार दिया है। विदेश मंत्रालय ने साफ कहा कि भारत का रूस से तेल आयात बाजार की जरूरतों और 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा सुरक्षा के लिए है। इसके अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की पुतिन से मॉस्को में मुलाकात और पुतिन की इस साल भारत यात्रा की खबरें ट्रंप को बैकफुट पर ला रही हैं।

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रूस का रुख, पुतिन की चाणक्य नीति

रूस, जो पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों की मार झेल रहा है, अब ब्रिक्स के अन्य देशों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभा रहा है। पुतिन ने 2022 में ब्रिक्स मुद्रा की बात छेड़ी थी और अब यह चर्चा तेज हो रही है। पुतिन की भारत यात्रा और मोदी के साथ उनकी हालिया टेलीफोनिक बातचीत से साफ है कि रूस भारत के साथ अपनी दोस्ती को और मजबूत करना चाहता है। रूस की ऊर्जा आपूर्ति ब्रिक्स देशों के लिए रीढ़ की हड्डी है और ट्रंप के टैरिफ इसे रोक नहीं पा रहे हैं।

चीन का भारत को समर्थन

चीन, जो ट्रंप के टैरिफ युद्ध का पुराना शिकार रहा है, अब भारत के साथ खड़ा है। चीन के आधिकारिक अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत के पक्ष में बयान जारी किए हैं और जिनपिंग ने ट्रंप के टैरिफ को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों का उल्लंघन बताया है। मोदी की आगामी चीन यात्रा और SCO समिट में ब्रिक्स देशों की एकजुटता से ट्रंप की नीतियों को करारा जवाब मिलने की उम्मीद है।

साउथ अफ्रीका का ट्रंप के खिलाफ गुस्सा

साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा को ट्रंप ने 'श्वेत अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव' का आरोप लगाकर अपमानित किया। ट्रंप ने साउथ अफ्रीका पर 30% टैरिफ लगाया और वहां से कुछ श्वेत शरणार्थियों को अमेरिका में स्वागत किया, जिसे 'व्हाइट नरसंहार' से बचने का दावा बताया गया। रामाफोसा ने इसकी कड़ी निंदा की और ब्रिक्स के अन्य नेताओं के साथ बातचीत तेज कर दी है। साउथ अफ्रीका की रणनीतिक धातु निर्यात क्षमता इसे ब्रिक्स का अहम हिस्सा बनाती है।
ब्रिक्स मुद्रा ट्रंप के लिए खतरे की घंटी

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ट्रंप की सबसे बड़ी चिंता है ब्रिक्स देशों की अपनी मुद्रा में व्यापार करने की योजना। रूस ने 2022 में एक नई अंतरराष्ट्रीय रिजर्व मुद्रा का प्रस्ताव रखा था और अब ब्रिक्स देश रुपये, युआन, रूबल जैसी राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं। अगर यह योजना कामयाब होती है, तो वैश्विक व्यापार में डॉलर की 80% हिस्सेदारी को गंभीर चुनौती मिल सकती है। ट्रंप ने इस खतरे को भांपते हुए क्रिप्टो करेंसी को बढ़ावा देना शुरू किया है, लेकिन ब्रिक्स की एकजुटता उनके लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है।

क्या होगा ट्रंप की दादागीरी का अंत?

ट्रंप ने टैरिफ युद्ध शुरू करके ब्रिक्स देशों को डराने की कोशिश की, लेकिन यह उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हो रही है। भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की एकजुटता ने न केवल ट्रंप की नीतियों को चुनौती दी है, बल्कि एक नई वैश्विक व्यवस्था की नींव रखी है। ब्रिक्स मुद्रा की चर्चा और इन देशों की संयुक्त आर्थिक ताकत ट्रंप के लिए खतरे की घंटी है। अगर ये पांच 'पांडव' अपनी रणनीति पर डटे रहे, तो ट्रंप का टैरिफ युद्ध अमेरिका के लिए ही उल्टा पड़ सकता है। यह युद्ध अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का खेल बन चुका है।

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