मध्यप्रदेश बना भारत का फूड-बास्केट, कृषि विकास में रचा नया इतिहास

भोपाल 
कभी 'बीमारू राज्य' और विकास की दौड़ में पिछड़ा माना जाने वाला मध्यप्रदेश आज आत्मनिर्भरता, कृषि समृद्धि और तीव्र आर्थिक विकास का प्रतीक बन चुका है। यह परिवर्तन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दूरदर्शी नेतृत्व, सरकार की योजनाबद्ध नीतियों और किसानों की अटूट मेहनत का परिणाम है। मध्यप्रदेश अब न केवल विकास दर में अग्रणी है, बल्कि खाद्यान्न उत्पादन में भी देश में नई पहचान बना चुका है। यही कारण है कि भारत का हृदय प्रदेश अब देश का नया 'फूड-बास्केट' कहलाने लगा है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव का कहना है कि मध्यप्रदेश ने कृषि और उससे सम्बद्ध क्षेत्रों में जो आशातीत प्रगति की है, उसमें हमारे अन्नदाताओं की महती भूमिका है। बीते वर्षों में मध्यप्रदेश ने कृषि उत्पादन, सिंचाई विस्तार और किसानों की आय वृद्धि के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कर देश का नया 'फूड बास्केट' बनने का गौरव प्राप्त किया है। राज्य की विकास दर अब डबल डिजिट में पहुंच चुकी है, जिसमें कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों का सबसे बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने का संकल्प लिया है। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, पर्याप्त बिजली आपूर्ति, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी, भावांतर भुगतान योजना और कृषि यंत्रीकरण ने किसानों से जीवन में खुशहाली आ रही है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने बताया कि आज मध्यप्रदेश गेहूं, चना, मसूर, सोयाबीन और तिलहन उत्पादन में देश में अग्रणी बन चुका है। पंजाब और हरियाणा जैसे परम्परागत कृषि सम्पन्न राज्यों को कई फसलों के उत्पादन में पीछे छोड़ना राज्य के किसानों की मेहनत और सरकार की संवेदनशील नीतियों का ही परिणाम है। हमने कृषि के साथ-साथ डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्रों में भी राज्य ने नई ऊंचाइयां हासिल की हैं। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP), एग्रो एंड फूड प्रोसेसिंग इकाइयां और कोल्ड स्टोरेज चेन जैसे अनेक कदम किसानों को उनके उत्पादों का बेहतर मूल्य दिलाने में मददगार सिद्ध हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट है – हर खेत तक पानी, हर किसान तक प्रगति और हर घर तक समृद्धि। मध्यप्रदेश का किसान अब सिर्फ़ अन्नदाता नहीं, बल्कि खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत का निर्माणकर्ता बन चुका है।

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मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और राज्य के पूरे कृषि अमले को इस राष्ट्रीय उपलब्धि की ओर बढ़ने के लिए बधाई दी है। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में मध्यप्रदेश देश की खाद्य सुरक्षा को सशक्त करेगा, बल्कि वैश्विक कृषि मानचित्र पर भी अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करेगा।

कृषि समृद्ध प्रदेश बनने की कहानी
कभी सीमित सिंचाई साधनों, अस्थिर बिजली आपूर्ति और अपर्याप्त अवसंरचना के कारण मध्यप्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था घाटे में चल रही थी। किसानों की आमदनी सीमित थी और ग्रामीण जीवन में भी कुछ कठिनाइयां थीं। परंतु बीते दो दशकों में परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। सरकार ने कृषि और ग्रामीण विकास को अपनी नीतियों के केंद्र में रखकर जो कार्य किया, उसने राज्य की तस्वीर ही बदल दी। हाल ही में हुए आर्थिक सर्वेक्षण में मध्यप्रदेश ने 24 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की है, जो राष्ट्रीय विकास औसत से कहीं अधिक है। यह प्रगति बताती है कि मध्यप्रदेश अब आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है।

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कृषि विकास में आई नई क्रांति
मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा विकास कृषि क्षेत्र में देखा गया है। बीते वर्षों में राज्य सरकार ने कृषि को सिर्फ़ आजीविका का साधन नहीं, बल्कि समृद्धि का आधार बनाने का संकल्प लिया। किसानों को फसल उत्पादन की लागत में राहत देने, खेती को लाभकारी बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई योजनाएं लागू की गईं। कृषक कल्याण मिशन के जरिए किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सभी जतन किए जा रहे हैं। भावांतर भुगतान योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फ़सल खरीदी और इस खरीदी पर बोनस राशि भी देने जैसे प्रयासों ने किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान की है। इसके अलावा उन्नत कृषि उपकरणों पर सब्सिडी और प्राकृतिक एवं जैविक खेती को बढ़ावा देने की कोशिशों ने भी खेती-किसानी को और अधिक रूचिकर, उत्पादक और टिकाऊ बनाया है। राज्य में सिंचाई सुविधाओं का खेत तक विस्तार भी एक मील का पत्थर साबित हुआ है। नर्मदा घाटी विकास परियोजना, पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदियों को आपस में जोड़ने और केन-बेतवा राष्ट्रीय नदी लिंक जैसी परियोजनाओं से लाखों हेक्टेयर कृषि क्षेत्र को सिंचाई सुविधा के दायरे में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति के सुदृढ़ीकरण से रबी सीजन में फसलों की उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ गई है।

खेती-किसानी की बदलती परिभाषा
मध्यप्रदेश के किसान अब पारम्परिक खेती तक सीमित नहीं हैं। वे नई तकनीकों और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाकर उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में सुधार ला रहे हैं। ड्रिप इरिगेशन, ऑर्गेनिक फार्मिंग, मल्टीक्रॉपिंग और फसल विविधीकरण जैसे नवाचारों ने कृषि को एक व्यावसायिक रूप दिया है। प्रदेश में कृषि विश्वविद्यालयों, अनुसंधान केंद्रों और कृषि विज्ञान केंद्रों की सक्रिय भूमिका ने किसानों को नवीनतम जानकारी सहित प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया है। अब किसान बाजार की मांग के अनुसार फसलें पैदा कर रहे हैं और निर्यात की दिशा में भी कदम बढ़ा रहे हैं।

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कृषि से औद्योगिक विकास तक
मध्यप्रदेश की तेज कृषि विकास दर देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले वर्षों में मध्यप्रदेश कृषि आधारित उद्योगों और एग्रो प्रोसेसिंग का केंद्र बनने जा रहा है। राज्य में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों, कोल्ड स्टोरेज और लॉजिस्टिक हब के निर्माण से कृषि उत्पादों के निर्यात की संभावना बढ़ेगी। सरकार की वन डिस्ट्रिक्ट 'वन प्रोडक्ट' (ODOP) योजना भी इस दिशा में मददगार सिद्ध हो रही है। यह किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में तो कारगर है ही, ग्रामीण रोजगार को भी यह योजना स्थायी बना रही है।

नया मध्यप्रदेश, नया आत्मविश्वास
मध्यप्रदेश आज बड़े आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। अब यह राज्य विकास के नए अध्याय लिख रहा है। गांव से शहर तक, खेत से बाजार तक, फ़ार्म टू लैब हर जगह परिवर्तन की एक नई लहर महसूस की जा रही है। प्रदेश के किसान अब सिर्फ अन्नदाता नहीं रहे, बल्कि “राष्ट्र निर्माता” और ऊर्जादाता भी बन रहे हैं। किसानों को उनके खेत में सोलर पम्प लगाने के लिये अनुदान योजना प्रारंभ की गई है। किसानों के परिश्रम और सरकार की किसान हितैषी संवेदनशील नीतियों ने मध्यप्रदेश को उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है, जिसकी कल्पना भी कभी दूर की कौड़ी लगती थी।

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