मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है, जाति जनगणना के संबंध में विचार करने के लिए तीन बिंदु सुझाए हैं

नई दिल्ली
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने जाति जनगणना के संबंध में विचार करने के लिए तीन बिंदु सुझाए हैं। इनमें एक प्रमुख मांग यह है कि आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को खत्म किया जाए। खरगे ने लिखा, 'मैंने 16 अप्रैल 2023 को आपको चिट्ठी लिखी थी और जाति जनगणना कराने की कांग्रेस की मांग आपके सामने रखी थी। दुर्भाग्य से, मुझे उसका कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद, आपकी पार्टी के नेताओं और आपने खुद इस जायज मांग को उठाने के लिए लगातार कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस नेतृत्व पर निशाना साधा। मगर, अब आप खुद स्वीकार कर रहे हैं कि यह मांग सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के हित में है।'

मल्लिकार्जुन खरगे ने अपील की है कि जातिगत जनगणना के विषय पर सभी राजनीतिक दलों से जल्द बातचीत की जाए और इस मामले में तेलंगाना मॉडल का उपयोग किया जाए। उन्होंने कहा कि राज्यों की ओर से पारित आरक्षण को तमिलनाडु की तर्ज पर संविधान की 9वीं अनुसूची में डाला जाए, आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को खत्म किया जाए और निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था लागू हो। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने खरगे का प5 मई की तिथि वाला यह पत्र अपने एक्स हैंडल पर साझा किया। रमेश ने कहा, 'कांग्रेस कार्यसमिति की 2 मई को हुई बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने सोमवार रात प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। देश पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले को लेकर आक्रोश और पीड़ा से गुजर रहा था। इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी ने जातिगत जनगणना पर अचानक और हताशाजनक यूटर्न लिया। खरगे जी ने अपने पत्र में तीन बेहद महत्वपूर्ण और स्पष्ट सुझाव दिए हैं।'

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तेलंगाना मॉडल को अपनाए जाने की मांग
पत्र में खरगे ने कहा, 'केंद्र सरकार ने बिना किसी स्पष्ट विवरण के यह घोषणा की है कि अगली जनगणना (जो वास्तव में 2021 में होनी थी) में जाति को भी एक अलग श्रेणी के रूप में शामिल किया जाएगा।' खरगे ने कांग्रेस शासित तेलंगाना में हुए जातिगत सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा, 'जनगणना से सम्बंधित प्रश्नावली का डिजाइन अत्यंत महत्वपूर्ण है। जाति संबंधी जानकारी केवल गिनती के लिए नहीं बल्कि व्यापक सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकत्र की जानी चाहिए। गृह मंत्रालय को जनगणना में पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए तेलंगाना मॉडल का उपयोग करना चाहिए। प्रक्रिया के अंत में होने वाली रिपोर्ट में कुछ भी छिपाया नहीं जाना चाहिए ताकि प्रत्येक जाति के पूर्ण सामाजिक-आर्थिक आंकडे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हों, जिससे एक जनगणना से दूसरी जनगणना तक उनकी सामाजिक-आर्थिक प्रगति को मापा जा सके और उन्हें संवैधानिक अधिकार दिए जा सकें।'

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कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है, 'जाति जनगणना के जो भी नतीजे आएं, यह स्पष्ट है कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गो के लिए आरक्षण पर मनमाने ढंग से लगाई गई 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा को संविधान संशोधन के माध्यम से हटाना होगा।' पत्र में खरगे ने कहा, 'अनुच्छेद 15(5) को भारतीय संविधान में 20 जनवरी 2006 से लागू किया गया था। इसके बाद इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई। लंबे विचार-विमर्श के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 29 जनवरी 2014 को इसे बरकरार रखा। यह फैसला 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले आया।' उनके मुताबिक, यह निजी शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है।

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खरगे ने कहा कि संसद की एक स्थायी समिति ने गत 25 मार्च को उच्च शिक्षा विभाग के लिए अनुदान की मांग पर अपनी 364वीं रिपोर्ट में भी अनुच्छेद 15 (5) को लागू करने के लिए नया कानून बनाने की सिफारिश की थी। उन्होंने कहा, 'जाति जनगणना जैसी किसी भी प्रक्रिया को किसी भी रूप में विभाजनकारी नहीं माना जाना चाहिए। सामाजिक और आर्थिक न्याय तथा स्थिति और अवसर की समानता सुनिश्चित करने के लिए इसे उपरोक्त सुझाए गए समग्र तरीके से कराना अत्यंत आवश्यक है।’

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