अब टॉयलेट का पानी और कचरा नहीं जाएगा बेकार, सरकार बनाएगी सड़कें और इमारतें: मंत्री गडकरी

नई दिल्ली

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी वर्तमान में केंद्र सरकार में एक अहम चेहरा हैं. वे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और अपने कामकाज की वजह से उन्हें अक्सर हाईवे मैन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है. नितिन गडकरी ने  देश को प्रदूषण मुक्त करने और कचरा हटाकर उसका निस्तारण करने का सरकार का एक प्लान एबीपी के मंच से साझा किया है. नितिन गडकरी का कहना है कि भविष्य में टॉयलेट के पानी और कचरे से इमारतें व सड़कें बनाई जाएगी. चलिए जानें कि यह कैसे संभव होगा. 

ये भी पढ़ें :  विश्व की प्रमुख आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति के रूप में मजबूती से उभर रहा भारत : शाह

कचरे से कैसे बनेगी सड़क?

 नितिन गड़करी ने सरकार का भविष्य का प्लान बताते हुए कहा, ‘80 लाख टन सॉलिड कचरा रोड बनाने के वक्त डाला गया है. दिल्ली-मुंबई हाईवे और UR2 रोड को बनाने में उस कचरे का इस्तेमाल किया गया है. अब सरकार का प्लान है कि 2027 खत्म होने से पहले इस देश का पूरा सॉलिड कचरा अलग करके रोड बनाने में डाला जाएगा और इससे देश को प्रदूषण के मुक्त किया जाएगा.’ 

टॉयलेट के गंदे पानी का कैसे होगा इस्तेमाल?

नितिन गडकरी ने गंदे पानी के इस्तेमाल को लेकर कहा, ‘इसके अलावा टॉयलेट का जो गंदा पानी है, जो कि रिसाइकिल होता है उसको रिसाइकिल करके उसकी टेस्टिंग करके अब ऑर्डर निकाला जाएगा कि बिल्डिंग और रोड बनाने के लिए उस फिल्टर पानी का इस्तेमाल किया जाएगा. इससे देश का प्रदूषण कम होगा और जनता को इससे मुक्ति मिलेगी.’

ये भी पढ़ें :  बीजापुर में आईईडी धमाका: आदिवासी बच्चे घायल, ग्रामीणों में माओवादी विरोधी गुस्सा

क्यों जरूरी है यह कदम?

भारत में हर दिन लाखों टन कचरा और गंदा पानी निकलता है. अब तक इसका बड़ा हिस्सा खुले में फेंका जाता रहा है, जिससे नदियां, जमीन और हवा प्रदूषित हो रही हैं. अगर इन्हें निर्माण में उपयोग किया जाए तो कचरे का बोझ कम होगा और पर्यावरण पर दबाव घटेगा, साथ ही साथ शहरी विकास परियोजनाओं में सस्ती और टिकाऊ सामग्री की उपलब्धता भी बढ़ेगी.

ये भी पढ़ें :  आज से 3 अक्टूबर तक पीयूष गोयल वाशिंगटन डीसी में 6ठी भारत-अमेरिका वाणिज्यिक वार्ता बैठक की सह-अध्यक्षता करेंगे

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो चुका है प्रयोग

ऐसा नहीं है कि भारत में इस तकनीक का पहली बार इस्तेमाल किया जा रहा है, बल्कि ऐसी तकनीकें यूरोप और एशियाई देशों में पहले से अपनाई जा रही हैं. वहां सीवेज स्लज और रीसाइकिल्ड वेस्ट से हाईवे, फ्लाईओवर और पब्लिक बिल्डिंग्स बनाई जा चुकी हैं. भारत में यह कदम कचरे से संपदा मिशन के तहत उठाया जा रहा है.

Share

क्लिक करके इन्हें भी पढ़ें

Leave a Comment