डा. गिरीश
महाराष्ट्र के जनपद शोलापुर का छोटा सा गांव मार्करबाड़ी अचानक सुर्खियों में आगया है। मीडिया से लेकर राजनैतिक हल्कों में उसकी चर्चा सुनायी पड़ रही है। वह इसलिए नहीं कि गांव में कोई संगीन वारदात अथवा घटना घट गयी थी। अपितु इसलिये कि गांव के लोगों ने बड़ी ही खामोशी से, अपने एक गांधीवादी कदम से लोकतन्त्र के आधारों को नयी मजबूती प्रदान की है। वह भी उस दौर में जब सत्ता प्रतिष्ठान और उस पर काबिज भाजपा और आरएसएस द्वारा लोकतन्त्र पर चहुंतरफा हमले बोले जा रहे हैं।
भाजपा और उसके अधीन शासकीय मशीनरी द्वारा निर्वाचन आयोग की पक्षधरता का लाभ उठाते हुये निर्वाचन प्रक्रिया को अकल्पनीय क्षति पहुंचाई जा रही है। ईवीएम मशीन में गड़बड़ी और चुनाव परिणामों को प्रभावित करने को भांति- भांति की हेराफेरी की अनगिनत खबरें मिलती रहती हैं। ऐसी ही एक खबर महाराष्ट्र की मालशिरस विधान सभा सीट से आयी। महाराष्ट्र विधान सभा की अन्य सीटों के साथ इस सीट पर भी इसी 20 नवंबर को मतदान हुआ था और 23 नवंबर को चुनाव परिणाम आया था। एनसीपी (शरद पवार) के प्रत्याशी उत्तम राव जानकर ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी राम सतपुते को 13147 वोटों से हराया है। लेकिन जानकर जिनकी कि लोकप्रियता असंदिग्ध है, को अपने ही गांव मार्करबाड़ी में भाजपा प्रत्याशी से कम वोट मिले।
एनसीपी प्रत्याशी जानकर को अपने ही गांव में 843 वोट मिले हैं जबकि भाजपा प्रत्याशी को वहाँ 1003 वोट मिले। गांव के तीन मतदान केन्द्रों पर लगभग दो हजार वोट हैं जिनमें से लगभग 1900 वोट पड़े थे। बताया जाता है कि इस गांव में भाजपा के दो सौ से भी कम वोट हैं। विजयी प्रत्याशी जानकर को पराजित भाजपा प्रत्याशी से यहाँ कम मत मिलने से गांववासियों का माथा ठनक गया। उन्हें ईवीएम पर शक था, जो और गहरा गया। अपने इस शक को मिटाने को उन्होने जो उपाय सोचा वह आज तक न तो किसी राजनेता के मस्तिष्क में आया न ही किसी ख्यातिलब्ध तकनीशियन के।
अपने शक को मिटाने को गांववासियों ने बैलट पत्र से माँक वोटिंग कराने का निश्चय किया। इसके लिये उन्होने समूचे गांव को मतदान के लिये तैयार किया। मतदान का खर्च जुटाने को आपस में चन्दा किया। मतदान के जगह जगह पोस्टर लगाये गये। 3 दिसंबर को सुबह 8: 00 बजे से वोटिंग होना तय था। प्रशासन से इसकी अनुमति भी मांगी गयी। लेकिन प्रशासन ने इसे गैर कानूनी करार देकर अनुमति हेतु आवेदन को रद्द कर दिया। यद्यपि यह अनौपचारिक मतदान था, वास्तविक नहीं। गांव में भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले मुट्ठी भर लोग मतदान रूपी इस कदम का मुखर विरोध कर रहे थे।
बैलट से रीपोलिंग कराके गांव वाले ईवीएम से हुये मतदान में घोषित मतों से इनकी तुलना करना चाहते थे। दोनों के मत टैली कर यह तय होना था कि ईवीएम से वोट मैनेज हुये थे। लेकिन बौखलाए प्रशासन द्वारा 3 दिसंबर, मंगलवार को सुबह ही गांव की सड़कें बन्द कर दी गयीं। चेतावनी दी गयी कि वोटिंग करने वालों पर मामले दर्ज किए जायेंगे और मतदान सामग्री जब्त कर ली जायेगी। कुछ लोग तैयार किए गए मतदान पंडाल में वोटिंग करने गये तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। शेष को बलपूर्वक खदेड़ दिया गया। इतना ही नहीं प्रशासन ने गांव में 5 दिसंबर तक के लिये धारा 163 (पूर्व की धारा 144) लगा दी जिसके तहत 5 से अधिक लोग एक जगह इकट्ठे नहीं हो सकते।
सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेत्रत्व वाली महाराष्ट्र की कार्यवाहक महायुति सरकार मतपत्रों द्वारा होने वाली इस गैर सरकारी रीपोलिंग से इतनी भयभीत क्यों हो गयी? क्या उसे यह भय सता रहा था कि इससे उनके द्वारा चुनावों में की जाने वाली हेरा फेरी और उसका मुख्य औज़ार बनी ईवीएम की कलई खुल जायेगी। वरना इतना भय क्यों? इतनी सख्ती क्यों? क्या उन्हें भय था कि मतपत्रों से पोलिंग के परिणाम यदि वैसे ही आये जैसा कि गांववाले दावा कर रहे हैं तो इससे महाराष्ट्र विधान सभा के 23 नवंबर को आये नतीजों पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा और उनकी सारी खुशियाँ काफ़ूर हो जायेंगी।
हाल के महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों में महायुति ने राज्य की 288 सीटों में से 230 सीटें जीती हैं। इसमें भाजपा 132 सीटें, शिवसेना 57 और अजित पवार की एनसीपी 41 सीटों पर विजयी हुयी है। महा विकास अघाड़ी को सिर्फ 46 सीटें मिली हैं। तो क्या मार्करबाड़ी गांव के मतपत्रों से निकलने वाले परिणाम महाराष्ट्र विधानसभा के समूचे चुनाव परिणामों पर सवालिया निशान नहीं लगा देते? इन परिणामों से डरी कार्यवाहक महायुति सरकार ने अनौपचारिक मतदान को बलपूर्वक रुकवा दिया।
पर इस पाबंदी से बात रुकने वाली नहीं। अकोला और वर्धा में कुछ जगहों पर जनता द्वारा मतपत्रों के द्वारा ऐसे माँक मतदान कराये जाने की खबरें आ रही हैं। लेकिन अब बात शायद महाराष्ट्र तक सीमित रहने वाली नहीं। लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा पर चुनावों में धांधली के कई आरोप लगे थे, पर निर्वाचन आयोग की पक्षधरता के चलते वे दब गये। हरियाणा विधान सभा चुनाव जिन्हें वे एक प्रतिशत से भी कम वोटों से जीते हैं, मैं भी उन पर ईवीएम में हेराफेरी और मतदान से मतगणना तक में धांधली के आरोप लगे थे। उत्तर प्रदेश जहां कि लोकसभा चुनावों में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा, विधानसभा उपचुनावों में भाजपा की 9 में से 7 सीटों पर जीत अनेक सवाल खड़े करती है। खास कर कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र की जीत जहां अल्पसंख्यक मतदाता बहुत बड़ी संख्या में हैं और भाजपा लगातार हारती रही है।
मार्करबाड़ी गांव की मतपेटियों से बाहर आने वाले परिणामों की धमक दूर दूर तक फैल चुकी है और देश ही नहीं दुनियां भर में भाजपा द्वारा लोकशाही से की जा रही खिलवाड़ की कलई खुल चुकी है। इसी डर से भाजपा महाराष्ट्र की जीत का जश्न तक नहीं मना पा रही।
सामंती काल में जब शासकों पर असीम अधिकार थे, तब भी शासकों के खिलाफ नाटक एवं प्रहसन आदि का मंचन कर जनता को जाग्रत किया जाता था। संस्कृत भाषा में महाकवि शूद्रक द्वारा रचित नाटक- मृच्छकटिकम ( मिट्टी की गाड़ी ) में तो उस समय के राज दरबार में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद पर गहरी चोट है। पर शासकों ने न तो इसे प्रतिबंधित किया नहीं इसका मंचन रोका। यह आज तक जारी है। पर हेराफेरी से वोट हासिल कर सत्ता शिखर तक पहुंची भाजपा को नाटकीय मतदान तक कबूल नहीं।
भाजपा का डर तो समझ में आता है, पर पूरे प्रकरण पर भारी भरकम विपक्षी दलों की चुप्पी रहस्यमय है। संसद में कोई सवाल तक नहीं उठा। बयान तक जारी नहीं किया गया। यहाँ तक कि कोई ट्वीट भी सामने नहीं आया। पर मार्करबाड़ी गांव के नागरिकों ने जो लकीर खींच दी है, उसे मिटाया नहीं जा सकता।
मार्करबाड़ी गाँव की इस ऐतिहासिक पहल से चुनावी धांधलियों और ईवीएम की गड़बड़ियों पर बहस तेज होगी। ‘बात निकली है तो दूर तलाक जायेगी।‘ सोशल मीडिया और कई यू- ट्यूब चैनलों ने इस पर गंभीर चर्चा की है। चुनाव सुधारों के समर्थकों को इससे निश्चय ही ताकत मिली है और वे इस चर्चा को आगे बढ़ाएंगे। सचिवालय के संग्रहालय में धूल फांक रही चुनाव सुधारों संबंधी ‘इंद्रजीत गुप्ता समिति की रिपोर्ट’ को बाहर लाया जा सकता है।
पर चुनावी धांधलियों से सत्ता शिखर पर विराजमान भाजपा इन प्रयासों को शायद ही परवान चढ़ने दे। वह ऐसी ही सख्ती से पेश आ सकती है जैसे कि मार्करबाड़ी गांव के लोगों से पेश आयी। कुछ भी हो जिन्न तो बोतल के बाहर आ चुका है। पर यह भी सच है कि भाजपा को आज छोटे मोटे टोटकों से नहीं हटाया जा सकता। इसे सत्ता से हटाने को देशव्यापी, व्यापक और धारदार आंदोलन की जरूरत है। और मार्करबाड़ी गांव के नागरिकों ने अंधेरे में एक छोटा सा दिया जला दिया है।