इंदौर, हिंदी में कहानी का कलेवर आमतौर पर छोटा होता है और उपन्यास या लंबी कहानी की तरह उसमें एक से ज़्यादा मुद्दे उठाने की गुंजाइश नहीं होती। दिनेश भट्ट अपनी कहानी में यह जोख़िम उठाते है और एक-एक कहानी में एक से ज़्यादा सवालों से दो-चार होने की कोशिश करते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में वे कहानी की औपन्यासिक संभावनाओं का अंत भी कर देते हैं जो अच्छा नहीं है। अवसर था समकालीन हिंदी कहानीकार दिनेश भट्ट (छिंदवाड़ा) के कहानी पाठ और उसके उपरांत हुई चर्चा का। इस अवसर…
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