मध्यप्रदेश की राज्य मछली महाशीर पर संकट, कभी 40 किलो की मछली अब सिर्फ 4 किलो

भोपाल 

मध्यप्रदेश की पहचान बन चुकी महाशीर मछली अब संकट में है. यह वही मछली है जिसे 2011 में राज्य मछली का दर्जा दिया गया था और जिसे लोग “टाइगर फिश” के नाम से भी जानते हैं. कभी नर्मदा में 40 किलो तक वज़न और 7 फीट लंबाई वाली यह मछली पाई जाती थी, लेकिन अब इसका वजन घटकर सिर्फ 4 किलो और लंबाई 2 फीट तक रह गई है.

महाशीर विलुप्त की कगार पर, महज 2 फीसदी ही बची

 नर्मदा में पाई जाने वाली राज्य मछली महाशीर पर संकट मंडरा रहा है। स्वच्छ जल में रहने वाली महाशीर नर्मदा में बढ़ते प्रदूषण, पर्यावरणीय संकट, अवैध उत्खनन जैसी समस्याओं के कारण घटती जा रही है। नए आंकड़ों के अनुसार नर्मदा में इसकी संख्या 30 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत हो गई है।

महाशीर ताजे और साफ पानी में ही पनपती है। पिछले कुछ वर्षों में नर्मदा में बढ़ते प्रदूषण के कारण इसकी संख्या तेजी से घटी है। इसमें सीवेज का पानी सबसे बड़ा कारण है। विशेषज्ञों के अनुसार नर्मदा से अंधाधुंत रेत उत्खनन से नदी की धार टूट रही है। नदी में प्राकृतिक रूप से आने वाले जल की मात्रा लगातार घटी है। नदी पर बांधों के निर्माण जैसे कारणों से इस मछली की संख्या तेजी से घटी है।

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मछली घटने से जल जैविक स्थिति होगी प्रभावित

नर्मदा में महाशीर मछली की पर्यावरण को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिस पानी में मछली न हो उसकी जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं रहती। वैज्ञानिकों के अनुसार जलस्रोतों में मछली जीवन सूचकांक है, केन्द्रीय अंतरस्थलीय माित्स्यकीय अनुसंधान केन्द्र कोलकाता के अनुसार नर्मदा में महाशीर मछली 30 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत हो गई है।

2011 में मिला राज्य मछली का दर्जा

वैज्ञानिकों के अनुसार जैव विविधता के लिहाज से नर्मदा में महाशीर का होना बहुत जरूरी है। 26 सितम्बर 2011 में महाशीर को राज्य में संरक्षण प्रदान कर स्टेट फिश घोषित किया गया। वर्ष 2012 में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने महाशीर को विलुप्त प्राय घोषित किया है।

नदी को साफ रखने में अहम भूमिका

इस मछली की खासियत यह है कि ये पत्थरों में लगने वाली काई और पानी की गंदगी खाकर नदी को साफ रखने में अहम भूमिका निभाती है। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आंकलन कर कई स्थानों पर नर्मदा जल "ए" ग्रेड और बिना किसी उपचार के पीने योग्य बताया गया है। लेकिन ऐसे स्थानों पर भी जल में महाशीर का अस्तित्व मुश्किल में है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर जल वाकई साफ होता तो महाशीर के अंडे पानी में जरूर नजर आते।

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यह खुलासा जबलपुर स्थित वेटरनरी यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ने किया है.

कैसे घट गई महाशीर मछली?

पहले नर्मदा में महाशीर की आबादी करीब 20% थी.

अब यह घटकर सिर्फ 1% रह गई है.

लंबाई 7 फीट से घटकर 1.5 से 2 फीट.

वजन 40 किलो से घटकर 2-4 किलो.

कहां और कैसे हुई स्टडी?

रिसर्चर ने “स्टडी ऑन द ब्रीडिंग ग्राउंड ऑफ महाशीर इन नर्मदा रिवर ऑफ जबलपुर डिस्ट्रिक्ट” विषय पर अध्ययन किया.

रिसर्च नर्मदा नदी के चार घाटों – गौरी घाट, तिलवारा घाट, लम्हेटा घाट और भेड़ाघाट – में किया गया.

करीब 25 किलोमीटर लंबे एरिया में मछलियों की लंबाई, वजन और ब्रीडिंग पैटर्न पर रिसर्च की गई.

25 मछुआरों से ली मदद

अध्ययन के दौरान 25 से ज्यादा मछुआरों से जानकारी जुटाई गई. मछुआरों ने बताया कि महाशीर अभी भी इन घाटों पर ब्रीडिंग कर रही है, लेकिन उसका साइज़ और वजन पहले जैसा नहीं है.

घटने की मुख्य वजहें

फिशरी साइंस कॉलेज जबलपुर के डीन ने बताया कि—

अवैध खनन से नर्मदा का प्राकृतिक आवास नष्ट हो गया.

मछलियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा.

लगातार घटते संसाधनों की वजह से उनका वजन 2-4 किलो और लंबाई 1.5 से 2 फीट तक सीमित हो गई है.

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क्यों चिंता की बात?

महाशीर मछली को “नदी की शान” कहा जाता है. इसका आकार और वजन घटना इस बात का संकेत है कि नर्मदा नदी का इकोसिस्टम खतरे में है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अवैध खनन और प्रदूषण पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में यह मछली विलुप्त भी हो सकती है.

नर्मदा को रखती है स्वच्छ

बड़वाह वन क्षेत्र में महाशीर की कैप्टिव ब्रीडिंग कराने के लिए नदी जैसा स्ट्रक्चर बनाया गया है। यहां पर देश में पहली बार महाशीर की ब्रीडिंग की गई, जो सफल भी रही। अब इसकी ब्रीडिंग के लिए भोपाल के केरवा और कोलार में इसकी संभावनाओं की तलाश की जा रही है। यह मछली प्राकृतिक रूप से पानी को साफ करने का काम करती है। नर्मदा को स्वच्छ रखने और प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी महाशीर अहम भूमिका निभाती है।

इसलिए विलुप्ति की कगार पर

जैव विविधता बोर्ड के पूर्व सदस्य सचिव आर श्रीनिवास मूर्ति ने बताया महाशीर बहती नदी और राफ्टिंग वाली जगह अंडे देती है। इन्हें अंडे देने के लिए अनुकूल स्थान नहीं मिल रहा। शिकार, रेत का अवैध उत्खनन, पानी की धाराओं का खत्म होना भी इसके विलुप्त होने का कारण है।

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