चीन को 440 वोल्ट का झटका, सऊदी ने पाकिस्‍तान वाले J-35 फाइटर जेट खरीदने से किया इनकार

रियाद
 चीन की मिडिल ईस्ट स्ट्रैटजी को तगड़ा झटका देते हुए सऊदी अरब ने J-35 स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने से इनकार कर दिया है। शी जिनपिंग के लिए ये बहुत बड़ा झटका है। क्योंकि शी जिनपिंग की स्ट्रैटजी के मुताबिक खाड़ी के ताकतवर देशों में चीनी हथियारों से अमेरिकी हथियारों को रिप्लेस करना था। शी जिनपिंग चाहते थे कि सऊदी अरब जैसे ताकतवर देश अगर J-35 स्टील्थ फाइटर खरीदते हैं, तो ना सिर्फ चीनी जेट्स की बिक्री बढ़ेगी, बल्कि रणनीतिक तौर पर मिडिल ईस्ट में अमेरिकी हथियारों के लिए भी वो दरवाजे बंद कर सकता है। लेकिन IDRW की रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी अरब ने चीन को उस वक्त झटका दिया है, जब पिछले साल नवंबर में जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया था और चीनी अधिकारी झुहाई एयर शो के कामयाब होने का जश्न मना रहे थे।

चीन ने बार बार दावा किया था कि सऊदी अरब चीनी स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने वाला है। लेकिन जी-20 शिखर सम्मेलन ने एक कहानी के एक नये अध्याय को ही खोलकर रख दिया है। नई रिपोर्ट में कहा गया है की सऊदी अरब अब छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के निर्माण के लिए ब्रिटेन, इटली और जापान के साथ मिलकर काम करने वाला है और इन देशों के बीच प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत एडवांस स्तर तक पहुंच चुकी है। माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक ये सौदा पक्का हो जाएगा। इस दौरान प्रोजेक्ट की रूपरेखा तय कर ली जाएगी।

ये भी पढ़ें :  चीन 10 फरवरी से अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा

चीन को सऊदी ने दिया बहुत बड़ा झटका
चीन के लिए ये पैरों तले जमीन खिसकाने वाला झटका है। मिडिल ईस्ट में उसकी रणनीति पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को कमजोर करने की थी। इसके अलावा वो J-35 स्टील्थ फाइटर के लिए बड़े बाजार की तलाश कर रहा है। अभी तक J-35 स्टील्थ फाइटर को खरीदने के लिए सिर्फ पाकिस्तान तैयार हुआ है। एक्सपर्ट्स लगातार J-35 स्टील्थ फाइटर की क्षमता को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पाकिस्तान भी चीनी प्रेशर की वजह से इस फाइटर को खरीदने के लिए तैयार हुआ है। लेकिन सऊदी अरब के सामने ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी। सऊदी अरब के इनकार के बाद कई और देश, जिनके साथ चीन J-35 स्टील्थ फाइटर की बिक्री को लेकर बातचीत कर रहा था, वो सौदे से पीछे हट सकते हैं। इसकी टेक्नोलॉजी पर अब शक के बादल और गहरे हो गये हैं।

ये भी पढ़ें :  ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य पूरा करने में छत्तीसगढ़ का रहेगा अहम योगदान: सीएम साय

IDRW की रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी अरब ने ये फैसला अचानक नहीं लिया है। बल्कि चीन की तरफ से करीबी संबंध बनाने के बावजूद बीजिंग की मानसिकता को लेकर सतर्क रहा है। उसने चीनी सैन्य हार्डवेयर को लेकर संतुलित रवैया अपनाया है। उसने कुछ चीनी हथियार जरूर खरीदे हैं, लेकिन स्ट्रैटजिक हथियार अभी तक नहीं खरीदे हैं। लिहाजा एक्सपर्ट्स इसे सिर्फ सऊदी अरब की हथियार खरीद में विविधिता के नजरिए से ही देख रहे हैं। IDRW ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सऊदी अरब और पश्चिमी देशों के अधिकारी पहले से ही गोपनीय स्तर पर इस नये प्रोजेक्ट पर बातचीत कर रहे हैं। पश्चिमी देशों के बीच फाइटर जेट निर्माण के लिए हाई टेक्नोलॉजी है, जो सऊदी और पश्चिमी देशों के बीच दीर्घकालिक रणनीति का संकेत देता है।

जे-35 लड़ाकू विमान को नहीं मिल रहा खरीददार?
पाकिस्तान के अलावा किसी भी और देश ने अभी तक जे-35 लड़ाकू विमान को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई है। चीनी फाइटर जेट हालांकि एफ-35 जैसे अमेरिकी फाइटर जेट्स की तुलना में काफी सस्ता है और इसका मेटिनेंस भी कम खर्चीला है, लेकिन ये प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहा है। फरवरी 2024 में सऊदी अरब में आयोजित ग्लोबल एयरशो के दौरान चीन ने FC-31 को प्रदर्शन के लिए भेजा था। FC-31 लड़ाकू विमान, J-35 का पूर्व वैरिएंट है। लेकिन FC-31 भी डिफेंस एक्सपर्ट्स को प्रभावित नहीं कर पाया।

ये भी पढ़ें :  प्रथम चरण में भाजपा का खाता भी नहीं खुलेगा : दीपक बैज

चीन की डिफेंस इंडस्ट्री ने बहुत शानदार तरक्की की है और देश की रक्षा जरूरतों को पूरा किया है। लेकिन बावजूद इसके चीन को विदेशी ग्राहकों की तलाश के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। मध्य-पूर्व से चीन को काफी उम्मीदें थीं, लेकिन वहां भी उसे कामयाबी नहीं मिल पा रही है। इन बातों के अलावा भी साल 2019 से 2023 तक चीन के हथियार कंपोनेंट्स में 77% हिस्सा रूस से आयात किया गया था। वहीं चीन कई क्रिटिकल हथियारों के लिए फ्रांस और रूस पर भी निर्भर था, लिहाजा यह निर्भरता चीन के आत्मनिर्भरता और तकनीकी कौशल के दावों पर सवाल उठाती है।

Share

क्लिक करके इन्हें भी पढ़ें

Leave a Comment