सम्राट विक्रमादित्य के भी आराध्य हैं भगवान गणेश

( रघुवर दयाल गोहिया )

सीहोर।  मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 40 किमी दूर जिला मुख्यालय सीहोर के नजदीकी ग्राम गोपालपुर में भगवान श्री गणेश का चमत्कारिक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में मौजूद गणेशजी की प्रतिमा लगभग 2 हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है जो समीप ही बहने वाली सीवन नदी से मिलना बताई जाती है।
चिंतामन गणेश मंदिर से जुड़े कुछ रोचक किस्से  :
सीहोर के पश्चिम में करीब 3 किमी दूर गोपालपुर ग्राम में आज से करीब 50 साल पहले तक कुछ कच्चे मकान थे और आसपास जंगल हुआ करता था। यहां गणेश मंदिर तक जाने के लिए भी कच्चा रास्ता ही था। तब अधिकतर लोग पैदल ही यहां भगवान के दर्शन के लिए आते थे। शहर से तांगे में बैठकर भी श्रद्धालु आते थे। गणेश चतुर्थी के दिन से यहां तीन दिन का मेला लगता था। जिसमें एक दिन महिलाओं और दूसरे दिन पुरुषों को दर्शन करने की परंपरा थी। तीसरे दिन महिलाएं एवं पुरुष एक साथ आ सकते थे।समय के साथ यह परंपरा भी खत्म हो गई।
चिंतामन सिद्ध गणेश की देशभर में कुल चार स्वयंभू प्रतिमाएं बताई गई हैं, जिनमें से एक सीहोर में स्थित है।
धीरे धीरे यह मंदिर प्रसिद्ध होता गया और आज इसकी ख्याति देश विदेश में फैल चुकी है।
कुछ सालों से इस मंदिर के पार्श्व में बनी दीवार पर लोग मन्नत मानते हुए सिंदूर से उल्टा स्वास्तिक बनाने लगे हैं। कई लोग मंदिर के आसपास लगी जालियों में धागा भी बांध देते हैं। जब लोगों की मन्नत पूरी होती है तो पूजा अर्चना के साथ सीधा स्वास्तिक बनाकर गणेश जी का आभार प्रगट किया जाता है।
दो हजार वर्ष पुराने मंदिर की ऐसी है कहानी :
चिंतामन गणेश मंदिर का इतिहास करीब दो हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। कहते हैं कि सम्राट विक्रमादित्य सीवन नदी से कमल के फूल के रूप में भगवान गणेश को रथ में लेकर जा रहे थे। सुबह होते ही रथ जमीन में धंस गया और रथ में रखा कमल का फूल गणेश की मूर्ति के रूप में बदलने लगा। जिसके बाद मूर्ति जमीन में धंसने लगी। बाद में इस स्थान पर मंदिर बनवाया गया। आज भी यह प्रतिमा जमीन में आधी धंसी हुई है।
चिंतामन सिध्द गणेश को लेकर पौराणिक इतिहास भी है। जानकार बताते हैं कि चिंतामन सिद्ध भगवान गणेश की देश में चार स्वंयभू प्रतिमाएं हैं। इनमें से एक रणथंभौर सवाई माधोपुर (राजस्थान) दूसरी अवन्तिका, तीसरी गुजरात के सिद्धपुर में और चौथी सीहोर में चिंतामन गणेश मंदिर में स्थित है।
इस मंदिर और इसकी करीब 3 एकड़ भूमि को लेकर आधिपत्य का प्रकरण दो परिवारों के बीच कुछ सालों से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। फिलहाल कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है कि जब तक फैसला नहीं हो जाता तब तक एक परिवार एक साल और दूसरा परिवार दूसरे साल मंदिर की व्यवस्था संभालेगा। यही कारण है कि मंदिर के व्यवस्थापक बदलते ही मंदिर का नाम भी बदल दिया जाता है। भोपाल संभाग के कमिश्नर रहे  कवींद्र कियावत  ने इस स्थान का अतिक्रमण हटाने और सौंदर्यीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह बात तब की है जब वह यहां के कलेक्टर थे। तब उन्होंने नगर के प्राचीन मनकामेश्वर मंदिर का अतिक्रमण भी हटवाया था।
कोरोना महामारी के चलते यहां के गणेश मंदिर का मेला दो साल तक नहीं लग सका था। इस साल 2024 में शनिवार गणेश चतुर्थी पर्व से मेला प्रारंभ हो गया है और श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर में गणेशजी के दर्शन के लिए उमड़ने लगी है। साथ ही मगर पालिका परिषद ने भी शुगर फैक्ट्री चौराहा से लेकर कर्बला पुल के तिराहे तक साफ सफाई कर दी है। फुटपाथ के पास की झाड़ियां भी काट सी गई हैं। इससे लोगों को आवागमन में सुविधा हुई है। हालांकि अभी भी इस मार्ग पर कई जगह रात के समय अंधेरा छाया रहता है। अगर इन स्थानों पर हेलोजीन लाइट लगा दी जाए तो ये समस्या भी हल हो सकती है।
 फिलहाल यहां आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ हर दिन बढ़ती ही जाएगी जिसे नियंत्रित करने के लिए जिला प्रशासन भी अपनी व्यवस्था कर रहा होगा। हम तो इतना कह सकते हैं कि इस स्थान और यहां की गणेश प्रतिमा में कुछ तो विशेषता है जो देश, विदेश से लोग यहां खिंचे हुए चले आते हैं।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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