बीजिंग
दुनिया के नक्शे पर आज चीन केवल एक प्रोडक्शन सेंटर या आर्थिक शक्ति नहीं रह गया है, बल्कि अब वह दूसरे मुल्कों को कर्ज और वित्तीय सहायता देकर दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला बड़ा खिलाड़ी बन चुका है. अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान जैसे देशों से लेकर छोटे और गरीब देशों तक, लगभग हर कोने में चीन का पैसा पहुंच चुका है. हैरानी की बात यह है कि जिन देशों को चीन उधार दे रहा है, उनमें सबसे ऊपर नाम अमेरिका का है. बढ़ते तनाव, टकराव और प्रतिस्पर्धा के बावजूद ‘अंकल सैम’ ही चीन से सबसे बड़ा उधार लेने वाला देश है, यह फैक्ट दुनिया को चौंका देने के लिए काफी है.
डैन वोंग नामक एक लेखक ने अपनी किताब ब्रेकनेक (Breakneck) में लिखा है कि चीन की इंजीनियरिंग क्षमता, निर्माण की गति और शहरी बदलाव सिर्फ विकास की कहानी नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुके हैं. उनका सवाल सीधा है- “क्या चीन इतना आगे निकल चुका है कि अब अमेरिका ही पीछे छूटने से डर रहा है?” इसी बीच AidData रिसर्च लैब की रिपोर्ट ने इस बहस को और तीखा कर दिया है. रिपोर्ट बताती है कि साल 2000 से 2023 तक चीन ने दुनियाभर में कर्ज और अनुदान के रूप में 2.2 ट्रिलियन डॉलर बांटे हैं, और करीब 200 देशों व क्षेत्रों को इससे फायदा या कर्ज का बोझ मिला है.
दुनिया का सबसे बड़ा आधिकारिक कर्जदाता
चीन ने यह पैसा केवल आर्थिक रूप से कमजोर देशों को नहीं दिया. सिर्फ 6 फीसदी रकम की सहायता ग्रांट या सस्ते कर्ज के रूप में दी है. 47 फीसदी गरीब देशों ने और 43 फीसदी अमीर व विकसित देशों ने चीन से कर्ज लिया. यानी जितने विकासशील देश चीन पर निर्भर होते जा रहे हैं, उतने ही डेवलप हो चुके और अमीर देश भी चीन पर वित्तीय रूप से निर्भर हो गए हैं.
AidData के अनुसार, चीन अब दुनिया का सबसे बड़ा आधिकारिक कर्जदाता (official creditor) बन चुका है. सिर्फ इतना ही नहीं, चीन की राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियां और बैंक पूरी दुनिया में बुनियादी ढांचा, खनिज संसाधन, एयरपोर्ट, पाइपलाइन, डेटा सेंटर और हाई-टेक कंपनियों में निवेश कर रहे हैं. रिपोर्ट कहती है कि चीन की रकम 2,500 अमेरिकी परियोजनाओं में लगी है, जिनमें टेस्ला (Tesla), अमेज़न (Amazon), डिज्नी (Disney) और बोइंग (Boeing) जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं.
टेक्नोलॉजी और सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में खूब लगाया पैसा
दुनिया अक्सर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की चर्चा करती है, लेकिन आंकड़ों के अनुसार BRI चीन की कुल विदेशी उधारी का सिर्फ 20 फीसदी हिस्सा है. चीन का बहुत सारा पैसा अमीर देशों की टेक्नोलॉजी और सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में भी जा रहा है. यानी वह केवल सड़कें और पुल नहीं, बल्कि भविष्य की तकनीक पर भी अपना नियंत्रण मजबूत कर रहा है.
अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया… भारत भी… सब कर्जदार
2000 में चीन का सिर्फ 11 प्रतिशत कर्ज अमीर देशों को जाता था, लेकिन 2023 तक यह बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया. यानी अमीर दुनिया गरीब देशों की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से चीन के पैसों पर निर्भर होती गई है. चीन के 10 सबसे बड़े कर्जदार देशों की सूची में सबसे ऊपर है संयुक्त राज्य अमेरिका (202 बिलियन डॉलर), उसके बाद रूस (172 बिलियन डॉलर), ऑस्ट्रेलिया (130 बिलियन), वेनेज़ुएला (106 बिलियन) जैसे देश आते हैं. भारत भी इससे बाहर नहीं है. भारत ने चीन से 11.1 बिलियन डॉलर कर्ज और अनुदान के रूप में प्राप्त किए हैं.
इन सभी आंकड़ों से एक बात साफ उभरती है कि चीन का खेल केवल डेवलपमेंट हेतु मदद का नहीं, बल्कि रणनीतिक आर्थिक प्रभाव का है. कर्ज और निवेश के माध्यम से चीन न केवल देशों में बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, बल्कि वैश्विक राजनीतिक समीकरणों को भी अपने हित में मोड़ रहा है. और यही वजह है कि भविष्य की दुनिया की राजनीति, तकनीक और व्यापार में चीन की भूमिका पहले से कहीं अधिक निर्णायक होती जा रही है.


