राहुल गांधी की रणनीति फेल? मोहन सरकार पर नहीं पड़ा कोई असर, पार्टी बदलाव भी बेअसर

भोपाल
 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर प्रदेश में बदलाव के जिस दौर की शुरुआत की थी, उसमें कांग्रेस को मजबूत विपक्ष बनाने की सारी संभावनाएं निहित थीं, लेकिन बीते डेढ़ साल में कांग्रेस पहले से भी कमजोर दिखाई पड़ रही है।

जनहित, अपराध और महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर वह न सड़क पर मजबूती से उतर पा रही है, न ही सदन में सरकार को घेरने में कामयाब दिखाई दी है।

बीते माह भोपाल आए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए ‘नरेन्दर सरेंडर’ का विवादित बयान दिया था, लेकिन राहुल गांधी के लौटते ही कांग्रेस अपने पुराने ढर्रे पर आ गई।

कांग्रेस में बदलाव का नहीं दिखा असर

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की बदलती हुई संस्कृति पर भारतीय जनता पार्टी की छाप दिखाई पड़ती है। हाईकमान ने अपनी परिपाटी से अलग चलकर वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार किया और जीतू पटवारी जैसे युवा नेता को प्रदेश की कमान सौंप दी।

पटवारी विधानसभा चुनाव हार चुके हैं और विधानसभा के अंदर उनकी मौजूदगी नहीं है, ऐसे में सदन के अंदर भी युवा चेहरों पर भरोसा करते हुए उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष और हेमंत कटारे को उप नेता प्रतिपक्ष बनाया गया।
MP कांग्रेस नेता क्या कर रहे?

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उम्मीद थी कि कांग्रेस के युवा चेहरे पहली बार मुख्यमंत्री बने डॉ. मोहन यादव की सरकार को सीधी टक्कर देंगे। मोहन यादव ने विभागों के बंटवारे में गृह, उद्योग और जनसंपर्क जैसे महत्वपूर्ण विभाग अपने पास ही रखे हैं, ऐसे में कयास थे कि कानून व्यवस्था और अपराध जैसे मुद्दों पर कांग्रेस सीधे मोहन यादव को घेरेगी, लेकिन भोपाल से उज्जैन, इंदौर तक लव जिहाद जैसे मामलों के पर्दाफाश के बाद भी कांग्रेस इस पर मुखर होने से बचती रही।

भाजपा के विवाद और ब्रिज दोनों पर क्यों खामोश है कांग्रेस?

भाजपा के अंदरूनी समीकरण में स्पष्ट है कि मोहन यादव विधायक दल से लेकर कैबिनेट तक अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री जैसे मजबूत होने का प्रयास कर रहे हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। कई मौकों पर अपने बयानों से मंत्रियों और विधायकों ने सरकार व संगठन की फजीहत कराई है। शिकवे-शिकायतों का दौर भी थम नहीं रहा है।

ऐसे मौके विपक्ष के लिए अलग तरीके से बड़े अवसर पैदा करते हैं, लेकिन जीतू पटवारी और उनकी टीम इस दिशा में कोई सफलता प्राप्त नहीं कर सकी है।

90 डिग्री कोण वाले पुल के निर्माण कार्यों में तकनीकी खामी को लेकर भी कई मामले सामने आए। मुख्यमंत्री को आगे जाकर कार्रवाई करनी पड़ी, लेकिन कांग्रेस इस पूरे मामले पर आगे आने के बजाय दर्शक ही बनी रही।

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मुद्दे नहीं भुना पा रही कांग्रेस

विंध्य क्षेत्र में गांवों में सड़क न होने से महिलाओं विशेषकर गर्भवतियों के लिए दुविधा को लेकर इंटरनेट मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए। जनता ने वीडियो बनाकर वायरल किया और जनप्रतिनिधि से सीधा मोर्चा लिया।

कांग्रेस इस मामले में साथ भी आई, लेकिन प्रभावशाली तरीके से नागरिकों के सामने नहीं रख सकी। अधिकारियों के खिलाफ जांच का पत्र भी प्रदेश में सनसनी की तरह फैल गया, लेकिन कांग्रेस को इसमें सरकार को घेरने लायक शायद कुछ नहीं दिखा।
क्‍यों मात खा रही है कांग्रेस?

भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस ने युवा चेहरों पर भरोसा जताया और इन चेहरों ने भाजपा की तर्ज पर अपने नेताओं को संवाद कौशल विकास की ट्रेनिंग भी दी, लेकिन संगठन में कार्यकर्ताओं की कमी की तरफ अभी अनदेखी ही है।

पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ हमेशा कहते रहे हैं कि कांग्रेस में नेता ज्यादा हैं, कार्यकर्ता कम। बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की कमी शीर्ष नेतृत्व महसूस करता है।

जीतू पटवारी अब तक जितने प्रदर्शन आयोजित कर चुके हैं, उसमें संख्या बल की कमी उनके उत्साह को चोट पहुंचाती है। वरिष्ठ नेताओं को तरजीह न दिए जाने का नतीजा है कि कार्यकर्ताओं का बड़ा धड़ा आने वाले समय में अपने लिए संभावनाएं तलाशता हुआ फिलहाल हाथ पर हाथ धरे बैठा है। कांग्रेस का मुकाबला उस भाजपा से रहा है, जो हमेशा इलेक्शन मोड में रहती है।

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महिलाओं और युवाओं से कैसी दूरी?

युवाओं, महिलाओं, मजदूर और कमजोर वर्ग को जोड़ने में कांग्रेस की दिलचस्पी नहीं दिखाई दे रही है। ऐसे वर्गों के मुद्दे उठाने के लिए विधानसभा से बेहतर कौन सी जगह हो सकती है, लेकिन सदन में भी कांग्रेस ‘भैंस के आगे बीन बजाने’ जैसे प्रदर्शन तक ही सीमित है। ये प्रदर्शन कितना प्रभाव छोड़ पाते हैं, इस पर कांग्रेस को चिंतन करना चाहिए।

कोई शक नहीं है कि आय की तुलना में लोगों का खर्च बढ़ा है। गरीब और मध्यम आय वर्ग के लिए गुजर बसर आसान नहीं रहा। ऐसे मुद्दों को कांग्रेस गंभीरता से उठाने में चूक कर रही है।

इंटरनेट के दौर में जब सारे दावों की हकीकत क्षण भर में पता चल सकती है, तो कांग्रेस ऐसे किसी प्रयोग को लेकर तैयारी नहीं कर रही है। कांग्रेस की यही सरेंडर मुद्रा मोहन सरकार के लिए 2028 तक का सफर तय करने का सरपट रास्ता तैयार कर रही है।

 

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