इंदौर में दरगाह में गूंजा सुंदरकांड, मुस्लिम से फिर हिंदू बने शहाबुद्दीन, पहलगाम आतंकी हमले के बाद शहीदों को दी श्रद्धांजलि

 इंदौर
 मध्य प्रदेश के इंदौर के कुलकर्णी नगर भट्टा की एक दरगाह इन दिनों चर्चा का केंद्र बनी हुई है। जहां पहले कव्वाली की महफिलें सजा करती थीं, अब वहां सुंदरकांड का पाठ हो रहा है। लेकिन इस बदलाव के पीछे जो कहानी है, वह दिल को छू लेने वाली है। दरअसल, इसी दरगाह में कभी शहाबुद्दीन नाम का एक व्यक्ति कव्वाली का आयोजन करवाता था। लेकिन अब वही व्यक्ति, जिसने पहले हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपनाया था, एक बार फिर हिंदू धर्म में लौट आया है। अब वह शहाबुद्दीन नहीं, बल्कि श्यामू के नाम से पहचाने जा रहे हैं और अब वहीं श्यामू इसी दरगाह में सुंदरकांड का आयोजन करवा रहे हैं।

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श्यामू को अंदर तक झकझोर दिया

जानकारी के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने श्यामू को अंदर तक झकझोर दिया। खबर आई कि आतंकियों ने धर्म पूछकर लोगों को गोली मारी। यह सुनकर श्यामू ने न सिर्फ कव्वालियां बंद करवाईं, बल्कि खुद को फिर से हिंदू धर्म में स्थापित करने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि अब इस दरगाह में सिर्फ रामायण, सुंदरकांड और हनुमान चालीसा की गूंज होगी।

सुंदरकांड का पाठ और प्रसाद वितरण, शहीदों को श्रद्धांजलि

अब इसी दरगाह में भजन-कीर्तन, सुंदरकांड का पाठ और प्रसाद वितरण हो रहा है। विशेष आयोजन के तहत जम्मू-कश्मीर हमले में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी गई। लोगों ने दो मिनट का मौन रखकर देश के वीरों को नमन किया। माहौल पूरी तरह से भक्ति और देशभक्ति से सराबोर नजर आया।

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मुस्लिम समाज ने दिया सम्मान, बढ़ाया सौहार्द

इस आयोजन में मुस्लिम समाज के लोग भी शामिल हुए और सुंदरकांड पाठ करने वाले लोगों को फूलों और अंगवस्त्र से सम्मानित किया। यह दृश्य सभी के लिए प्रेरणादायक था, जहां धर्म के नाम पर बंटवारा नहीं, बल्कि मेल-मिलाप का संदेश दिया गया। इंदौर की धरती पर भाईचारे का जो अनोखा नज़ारा सामने आया, उसने साबित कर दिया कि जब दिलों में भक्ति और देशभक्ति हो, तो धर्म की दीवारें मायने नहीं रखतीं। हिंदू-मुस्लिम एकता की यह मिसाल इंदौर के लिए गर्व का विषय बन चुकी है।

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दरगाह का बदला स्वरूप बना चर्चा का विषय

जहां कभी कव्वाली गूंजती थी, वहां अब रामभक्ति का माहौल है। दरअसल, यह बदलाव क्षेत्र के पार्षद जीतू यादव ने किया। पार्षद जीतू यादव ने छोटी सी बदलती हुई दरगाह को एक बड़े स्वरूप में देखा और इसके बाद उसका विरोध किया। विरोध के बाद जब शहाबुद्दीन को समझाईश दी, उनको बताया गया कि किस तरह से आतंकियों ने नाम पूछकर गोली मारी थी। इसके बाद शहाबुद्दीन ने फैसला लिया कि वह अब से श्यामू कहलाएगा। पार्षद की इस पहल से कहीं ना कहीं एक अलग माहौल सुंदरकांड में देखने को मिला।

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